Wednesday, February 8, 2017

कौतुहल

दृश्य एक:

जंगल में बच्चा अपनी दादी से पूछता है कि पेड़ बड़े है या आदमी?
रास्ते खत्म क्यों होते है?
टूटकर कर पत्ता अकेला क्यों पड़ जाता है?
धूल की एक दिशा क्यों नही होती?
सवाल बड़े वाले है मगर बच्चे के मुंह से सुनकर दादी को अचरज नही होता है वो मुस्कुराती है और कहती है
मेरे बच्चे ! ना पेड़ बड़ा है ना आदमी। दोनों लम्बे छोटे जरूर हो सकते है बड़ा वही है जो शिकायत नही करता है इस लिहाज से पेड़ आदमी से बड़ा हुआ।
रास्ते इसलिए खत्म नही क्योंकि उन्हें मंजिल ने अकेला छोड़ा है जिन्हें मंजिल अकेला छोड़ देती है वो खतम होने की जद से बाहर चले जाते है।
टूटकर पता इसलिए अकेला पड़ जाता है क्योंकि वो मुक्ति का सुख भोग चुका होता है और प्रकृति हर सुख का प्रतिदान लेती है उसका अकेला पड़ जाना उसी प्रतिदान का हिस्सा है।
और धूल की एक दिशा इसलिए नही होती क्योंकि धूल खुद के बस में नही होती वो वेग के लिए हवा और तापमान आदि पर आश्रित है इस जग में जो भी किसी पर आश्रित है उसकी एक दिशा सम्भव नही है।
बच्चा अब कोई सवाल नही करता है वो दादी की पीठ को छूता है और कहता है आपकी पीठ क्यों झुकी है?
दादी उसे हंसते हुए गोद में उठा लेती है और कहती है इसलिए कि तुम्हें आसानी से उठा सकूं।
झुकना हमेशा गिरना नही होता है कभी कभी ये उठाने के लिए भी होता है।

दृश्य दो:

समंदर किनारे दो प्रेमी बैठे है।
प्रेमिका पूछती है
लहर जब लौटकर जाती है तब वो समंदर को क्या बताती है?
प्रेमी जवाब देता है वो किनारे की उदासी समंदर को बताती होगी।
नही तुम श्योर नही हो इसलिए अनुमान व्यक्त किया
थोड़ा सटीक उत्तर दो। सोचो जरा दोबारा सोचो।
लहर बताती होगी किनारे पर कितने उलझे हुए लोग रहते है।
मगर हर वक्त तो किनारे पर लोग नही रहते फिर ऐसा क्यों कहेंगी भला?
लोग चले जातें है मगर उलझन यही छोड़ जाते है प्रेमी ने अपनी बात इस तर्क से पुष्ट की।
तो क्या लहर छूटी हुए बातें गिनने आती है किनारे तक?प्रेमिका कौतुहल से पूछती है।
लहर समंदर की खबरी है ये बात मानने को दिल नही करता मगर तुमने पूछा है इसलिए बता रहा हूँ
लहर समंदर को ये बताती है किनारों के आगे एक समंदर और है।
समंदर का धैर्य अपने बिछड़े भाई से मिलने का धैर्य है।
प्रेमिका अब अपने प्रेमी से कोई सवाल नही करती वो बस अनमनी होकर ज़मीन पर एक दिल बनाती है और उसके नीचे दस्तखत की तरह लिख देती है
ज़िन्दगी !

© डॉ.अजित

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