Saturday, February 4, 2017

पूरणमासी

पूर्व पाठ:

कुछ लम्हें हमने चुराए है। ये चोरी वक्त के खिलाफ है इसकी ध्वनि एक सात्विक षड्यंत्र से मिलती है। इस चोरी के लिए बोला गया झूठ कभी ग्लानि या अपराधबोध नही पैदा करता।
इन लम्हों को जीते हुए समय ठहर जाता है इसलिए ब्रह्माण्ड की काल गणना में इनका कोई दस्तावेजी प्रमाण नही मिलेगा। इन लम्हों को चुराने पर अस्तित्व मुग्ध रहता है और ईश्वर को धन्यवाद ज्ञापित करता है।

दृश्य एक:

अंग्रेजी में कहा जाए तो ये फुल मून की शाम है मगर यहां मै भारतीय पंचांग की भाषा में कहूँगा आज पूर्णिमा है। दो आवारागर्द वजूद की जुम्बिश में बंधे अपने अपने ठिकाने की तरफ लौट रहे है। दिन भर वो साथ या यूं कहूँ उनके साथ आज दिन था तो ज्यादा ठीक रहेगा। आज मन थोड़ा कुलीन थोड़ा भदेस हुआ जाता है इसलिए वो कहता है आज पूरणमासी है। फुल मून,पूर्णिमा और अब पूरणमासी इन तीन नामकरण में एक बात का साम्य है तीनो पूर्णता का बोध कराते है। सच में आज का दिन एक पूर्ण दिन है सुबह से लेकर शाम तक पल पल को जीने के बाद इस दिन का हिसाब किसी को दिया नही जा सकता है मगर इस दिन को याद करके मुद्दत तक बेवजह जरूर जीया जा सकता है।

दृश्य दो:

चाँद ठीक आसमान के कदमों में आकर बैठ गया है उसे देख चाँद और सूरज में फर्क करना मुश्किल है मगर उसकी सौम्यता को देख ये अनुमान लगाया जा सकता है कि ये धरती से मिलने अपनी पूर्णता के साथ आया है। हो सकता है उसके पास आसमान का कोई पैगाम हो मगर फिलहाल ऐसा लग रहा है ये उन दोनों का निगेहबान है उनके साथ साथ चल रहा है।
रास्तों के हिस्से उसके सवाल आए है मगर रास्ते जिस तेजी से छूट रहे है उन सवालों का जवाब देना सम्भव नही है। फ़िलहाल सवाल सब नेपथ्य में चले गए है आसमान साफ है तो चाँद के दाग भी साफ़ दिख रहे है मगर इस दागों का भी अपना एक सौंदर्य है ऐसा लगता है चाँद पर दो प्रेमी एक दुसरे से रूठे हुए बैठे हो और चाँद उन्हें धरती के नजदीक ले आया हो ताकि वो धरती पर प्रेम की नाराज़गियां देखकर खुद का गुस्सा भूल जाए और सुलह कर लें।

दृश्य तीन:

दिल आज रूमानी होना चाहता है। चाँद की मौजूदगी ने बिखरे एहसासों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया है। गति के बावजूद चाँद एक पल के लिए आँखों से ओझल नही होता है। उनकी आँखों की चमक बताती है कि ये खुली आँख सपनें देखने की जुर्रत का लम्हा है हाथों में फंसे हाथ अपनी पकड़ मजबूत करते है फ़िलहाल एक आत्मीय मौन पसर गया है दोनों के मध्य। ये सम्मोहन का समय है।
नेपथ्य में मद्धम आवाज़ में कोई गाना बज रहा है मगर फिलहाल उसके संगीत के अलावा किसी और की जरूरत नही है इसलिए गाने के बोल आवारा भटक रहे है।

दृश्य चार:

पुरकशिश लम्हों की चादर ओढ़ ली गई आँखों में थोड़ी बेचैनी थोड़ी उदासी और ढेर सी आश्वस्ति एक साथ बैठी है। पलकों पर विस्मय का बोझ है मगर लबों पे तबस्सुम है। ये तबस्सुम हरकत का मोहताज नही है मगर इसकी अपनी हरारत है। चाँद के पैगाम सीधे दिलों में दस्तक दे रहे गोया उनसे दिल अपने सारे राज बयाँ करना चाहता हो मगर फ़िलहाल वो चुप है उसको चाँद के शिकवे सुनने है। चाँद जब पेड़ो की ओट में छिप जाता है तब दिल एक छोटे बच्चे की तरह मायूस होकर उसे तलाशता है। चाँद दोनों को देख रहा है और अपनी डायरी में उनकी आवारागर्दी के किस्से दर्ज कर रहा है। हो सकता है उसे ये कहानी उन्हें सुनानी हो जिन्हें यकीन करना मुश्किल होता है कि दो लोग बेवजह भी साथ हो सकते है।

सूत्रधार:

चाँद तुम एक धोखा नही हो तुम एक सच हो ठीक वैसे जैसा हमारा सच हमारे मध्य बैठा है। तुम आज बेहद नजदीक हो कल ठीक उतने दूर चले जाओगे मगर उम्मीद है कि गति और प्रेम के सम्मोहन में तुम एक लंबी यात्रा तय करके फिर एकदिन धरती से मिलने आओगे। धरती तुम्हारी प्रेमिका नही है उस पर शायद आसमान का हक ज्यादा है क्योंकि वो उस पर छाया हुआ है।मगर तुम धरती के सच्चे दोस्त हो तुम्हें देख वो उदासी में भी मुस्कुरा सकती है। आज जब तुम इतने नजदीक हो वो तुम्हारे कान के पीछे एक काला टीका लगाना चाहती है उसने अपनी आँख से काजल चुराना चाहा मगर उस वक्त आँख की कोर गिली हो गई इसलिए उसने अपनी तर्जनी से तुम्हारी पीठ पर स्वास्तिक बना दिया है। इसे शुभता का प्रतीक समझना तुम्हारा होना भर धरती के लिए पर्याप्त है वो तुम्हें हासिल नही करना चाहती वो बस तुम्हें यूं ही देखना चाहती है तुम्हें यूं देखकर वो अपने आज को बीते और आने वाले कल से मुक्त कर लेती है।
तुम चाँद हो इसलिए सब समझते हो ज्यादा कहने की जरूरत नही बस आते रहा करो यूं ही कभी मिलने तो कभी किसी को मिलानें।

©डॉ.अजित 

No comments:

Post a Comment