Tuesday, June 21, 2016

सुबह

ये डेनमार्क की एक सुबह है।

सूरज अपने औसत क्षेत्रफल से डेढ़ गुना छोटा निकला है। खगोलशास्त्र के लिहाज़ से ये कोरा गल्प है मगर प्रार्थनाओं का मनोविज्ञान साफ तौर पर इसकी वजह जानता है। सुबह हर देश की लगभग एक जैसी ही होती है किसी भी देश के देर तक सोते हुए लोग हमेशा कुछ न कुछ खो देते है ये अलग बात है जो रात में देर से सोते है वो पहले से कुछ बेहद प्यारा सामान कहीं खो चुके होते है।

सुबह की अच्छी और खराब बात यही है कि ये समय से नही आती है सब अपनी सुबह के इंतजार में है। कुछ फूल बिना किसी के इंतजार में खिल गए है उन्हें बारिश का भी इंतजार नही है बारिश यहां की सबसे उपेक्षित चीज़ है मगर वो धरती के सहारे जब भी मिलनें आती है हमेशा धरती को रुला कर जाती है।

कुछ रास्तों के कान थोड़े बड़े है वो मुद्दत तक करवट नही लेते है मगर उन्हें बच्चें बूढें जवान सबके कदमों के निशाँ साफ तौर पर याद है। लोग गुजर जातें है फिर रास्तें उन कदमों के निशान को उठाकर अपने संग्रहालय में ले जातें वहां किस्म किस्म के लोग यूं ही बेजान टंगे है रास्तों के पास हंसने का केवल एक ही विषय है वो उन लोगो के बारें में अनुमान लगाते है जो लौटकर नही आतें।

पार्क में कुछ बुजुर्ग बातें कर रहें है मगर मजे की बात ये है उन बातों में किसी की कोई दिलचस्पी नही है खुद उन बुजुर्गों की भी नही एक आदमी के पास अतीत की बातें है तो एक के पास भविष्य की चिंता दो आदमी ऐसे है जिनके पास केवल सहमति है उनके पास कोई विचार नही है वो मुग्ध भी नही है मगर फिर अचानक से एक खड़ा होता है और एक पेड़ की तरफ इशारा करता है और कहता है कोई बता सकता है ये पिछले जन्म में कहाँ पैदा हुआ था इस बात पर सब हंस पड़ते है इस तरह से सुबह के हिस्से में पहली बूढ़ी हंसी आती है।

एक बच्चा रो रहा है ऐसा लग रहा है उसका ईश्वर से सीधा संवाद हो रहा है। एक बच्चा हंस रहा है उसे देख सुबह अपनी यात्रा की थकान भूल गई है। धूप है मगर ठण्ड अनुपस्थित नही है फिर भी लोग धूप का आदर करतें है मगर वो चाहती है लोग उससे प्यार करें।

और मैं इस वक्त उपग्रह की तरह अपनी कक्षा के चक्कर काट रहा हूँ ताकि कुछ पूर्वानुमान भेज सकूं मेरी मदद से सुबह यह तय करेगी कि उसे धरती के किस हिस्से से प्यार करना है और किससे बातचीत कुछ दिन के लिए बंद रखनी है।

'ओ रे यायावर'

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