Sunday, June 19, 2016

जिन दिनों...

जिन दिनों फेसबुक पर नही था मैं
याद कर रहा था
अपनी तमाम बदतमीजियां
जो की थी कभी फेसबुक पर
मसलन
इनबॉक्स में बेवजह बिफर जाना
खुद को बहुत आदर्शवादी दिखाना
रिक्वेस्ट न भेजना
न एड करते जाना

किसी से नम्बर मांग लेना
किसी के पवित्र आग्रह पर
इनकार कर देना
जिसको नम्बर दिया
उसका फोन न उठाना

जहां जहां ईगो हुआ घायल
तर्को की मदद से बहस को विषयांतर की तरफ ले जाना
विपक्ष को लगभग निःशस्त्र करने जैसी जिद पर उतर आना

जिन दिनों फेसबुक पर नही था मैं
याद कर रहा था तमाम बेवकूफ़िया
जैसे शराब पीकर ऑनलाईन आ जाना
पव्वे से लेकर बियर बार तक तस्वीरें चिपकाना
फिर कुछ दोस्तों से लड़खड़ाती जबान में बतियाना
भावुक होकर इमोशनल कमेंट लिख जाना
फिर सुबह उठकर पछताना

उन दिनों
याद तो मुझे मेरी बेढंगी सेल्फ़ी भी बहुत आयी
खीझ की हद तक
दोस्तों को खुद की तस्वीरों से पकाना
आत्ममुग्धता को भी एक क्वालिटी बताना

रिपोस्ट के जरिए दोस्तों की याददाश्त आजमाना
पूछनें पर मुकर जाना
कमेंट के इंतजार में रातें बिताना
टच स्क्रीन का गर्म हो जाना
बेट्री एक प्रतिशत रहनें पर
घनिष्ठ दोस्त का इनबॉक्स में आना

जिन दिनों फेसबुक पर नही था मैं
याद कर रहा था
वो तमाम बातें जिनके साथ
फेसबुक पर था मैं।
© डॉ.अजित

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