Monday, June 1, 2015

मोशन इमोशन

गर्मी के कारण कल से मोशन लूज़ और इमोशन टाइट हो रखें है दोनों की थकान जीवन को विश्रांति से भर रही है। मैं पलकें मूंदे ध्यानस्थ हूँ तरल गरल के मध्य रेंगते शरीर को देखता हूँ। तन विरेचित होता है और मन अभी भी विषयगत दासता के चलतें गरिष्ठता की तरफ आकर्षित होता है। ताप के सन्ताप के मध्य मन की जलवायु समशीतोष्ण से ऊष्णकटिबंधीय हो चली है। छत पर एक कौआ कांव कांव करता है उसकी शिकायत है कोयल ने उससे सुर छल से छीन लिया है अब उसके पास कर्कश ध्वनि मात्र बची है मैं उसे यथास्थिति में जीने का सूत्र देने चाहता हूँ मगर वो भूख प्यास के कोलाहल के बीच अन्यत्र उड़ जाता है। चारदीवारी में कृत्रिम लू मुझ पर फैंकने वाले पंखें की तरफ मैंने एक बार अनमना होकर देखा तो लगा उसे जमाने भर से इतनी शिकायत है कि उसकी इच्छा कभी कोई नही पूछता दुनिया ने उपयोगितावाद के दर्शन के चलते उसका इतना उपयोग किया है कि वो खुद की गति भूल गया है बिजली से कोई दोस्ती नही है वो बस हवा को काट रहा है शायद मुझे देख उसे इंसान का इंसान से कमतर होना याद आता है इसलिए वो लू से मुझे पकाकर एक मुकम्मल इंसान बनाना चाहता है।
इस कमरें के चारों कोनों में चार छोटे त्रिभुज जितनी जगह खाली है वहां कोई झाड़ू नही पहूंच पाती है वो इन कोनों का खुद का बनाया निषिद्ध क्षेत्र है वो वहां कुछ बदलाव नही चाहते क्योंकि बदलाव का एक अर्थ सम्पादन भी होता है जो नैसर्गिक प्रवाह का मृत्यु गीत लिखता है बड़ी ही महीन लिखावट में।
नंगे पैर जमीन पर रखता हूँ तो तलवों को ठंडक का अहसास होता है ये ठण्ड बाह्य तापमान से प्रभावित नही है बल्कि इस एक स्थाई स्रोत भूगर्भ की नीरव शीतलता है जहां पिछले जन्म में मैनें अपने लिए एक टुकड़ा आरक्षित किया था।
धरती इसी जन्म में उऋण होना चाहती है इसलिए मेरे सपाट तलवों पर चन्दन वन का टीका लगा कहती है मन के ताप से मुझे मत तपाओं हो सके तो अपने पूर्व जन्म के संचित कर्म के बल से शीत स्तम्भित हो जाओं।
और मैं लूज मोशन तथा टाइट इमोशन के मध्य अपने तलवें सिकोड़ता हूँ फिर एड़ी घिसी चप्पल को पहनता हूँ धरती मुझसे नाराज़ नही होती बल्कि मुझे मुआफ़ कर देती है क्योंकि उसे पता है कल आज और कल मैं सोचालय के दर्शन पर टीकाएं कर रहा हूँ मुक्ति को अनुभूत किया जाता है अभिव्यक्त नही इस बात को धरती और इस कमरें से बेहतर कौन जान सकता है भला।

'सोच और मोच,

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