Thursday, May 14, 2015

गर्मी

गर्मी का मौसम है। लू चल रही है। सर्दी की तरह मन की रुमानियत तलाशता हूं मगर लाख आवाज़ देने पर उसका कोई पता नही चलता है। गर्मी के ये चार महीनें अपनी उपेक्षा से इतने आहत होंगे कि तपाते हुए मुझे भस्म करना चाहेंगे। इन चार महीनों में नही लिख पाउंगा मैं एक भी खत कविता या गज़ल। तापमान के लिहाज़ से मन के ग्लेशियर को पिंघलना चाहिए मगर मेरी केवल देह पर पसीना आता है मन का तापमान वही जनवरी में अटका हुआ है। नही जानता कैसे दिल की कन्द्राओं में जमीं आंसूओं की बर्फ सुरक्षित है।

कभी कभी जी अतिवादी हो जाता है। बंद कमरें में खिडकी पंखा सब बंद करके समाधिस्थ हो बैठ जाता हूं पसीना ललाट से चलकर एडी तक पहूंच जाता है मगर मन की स्याह ठंडी बर्फीली दुनिया पर लेशमात्र भी प्रभाव नही पडता है। देह भीगकर ठंडी हो जाती है गर्मी का अहसास भी लगभग समाप्त हो जाता है फिर भी मन किसी सवाल का जवाब नही देना चाहता है। यह स्थिर प्रज्ञ होने जैसा जरुर प्रतीत होता है मगर वास्तव में यह ऐसा नही है। खुद की तलाशी लेने पर मै इसे कुछ-कुछ द्वन्दात्मक भौतिकवाद के नजदीक पाता हूं। पता नही यह बाहर की गर्मी का असर है या अन्दर की यादों की ठंडक का मगर मै खुद से बहुत दूर निकल आया हूं।

गर्मी के इन चार महीनों के परिवेशीय प्रतिकूलता मुझे विवेक का दास बनाना चाहती है जबकि मै सर्दियों से दिल के सहारे जी रहा हूं और इस तरह जीना मेरे लिए सुखद भले ही न रहा हो मगर मै उस मनस्थिति को ठीक ठीक समझ पाता हूं। फिलहाल मै यह तय नही कर पा रहा हूं कि मै गर्मी के ताप से खुद का चेहरा कैसे साफ करुं।

मुझे पहाड बुला रहें है उन छोटे छोटे रास्तों के खत मुझे मिलें है जहां कभी मैने अपनें जूते के फीते बांधे थे। पहाड की चढाई चढते हुए मैने थकान में यूं ही बेतरतीब ढंग कुछ फूलों पत्तियों को क्रुरता से मसल कर फैंक दिया था उन्होने कहा है कि आ जाओं हमनें तुम्हें नादान समझ माफ कर दिया है अब हम तुम्हारा इंतजार कर रहे है। स्वप्न में मुझे मीठे पानी के छोटे छोटे स्रोत कहते है हम तुम्हारी हथेलियों को चूमना चाहते है तुमने कितनी मासूमियत से अपने हाथ को जोड ओक बना कर हमारा पानी चखा था तुम दिल के बुरे आदमी नही हो इसलिए प्यास के बावजूद विनम्र दिखाई देते हो वो अपना अपना पता मेरी जेब में रखतें है सुबह उठकर देखता हूं तो मुझे मेरी जेब थोडी गीली महसूस होती है।

कुछ पत्थरों ने भी सन्देशे भिजवाएं है कि उनका भार कुछ ग्राम में कम हो गया है वो सूरज़ के ताप के बीच मेरी पीठ की छाया में थोडी देर सोना चाहते है। उनका आग्रह है इसी गर्मी में उन तक मै आ जाऊं क्योंकि अगली गर्मी तक वो अपना स्थान छोड नदी मे कूद आत्महत्या कर लेंगे उनका प्रेम देखकर मैं द्रवित हो जाता हूं।

गर्मी का आना महज ताप का आना नही है गर्मी का आना मेरे लिए सर्दी का जाना और चांद का कमजोर पड जाना है ऐसे में मैं पहाडों से आश्रय मांगता हूं वें मेरे निर्वासन को भली भांति समझते है इसलिए उन्होनें मुझे भौतिक/अभौतिक शरण देना स्वीकार कर लिया है।

तुम वातानूकूलित कक्षों में बैठ लिक्विड डाईट और लेमोनाईड के प्रयोग करते रहना मै इस गर्मी में जीने के लिए पहाड पर जा रहा हूं अब मुझ तक तुम्हें अपनी बात पहूंचानें के लिए दुगनी गति से चिल्लाना पडेगा खैर इसमें तो तुम माहिर भी हो। मै ऊपर से तुम्हारे माथे का पसीना देख केवल मुस्कुरा दिया करुंगा मेरी हंसी तुम बादलों के गडगडाहट मे सुन सकोगी और हां कभी बेमौसमी बारिश आ जाए तो समझ लेना यहां मैनें तुम्हें याद किया है याद करके रोया हूं इस बात पर तो तुम खैर यकीन करनें से रही।

‘इस गर्मी

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