Wednesday, May 13, 2015

बेमौसमी बारिश

बेमौसमी बारिश है।तुम्हारे हाथ की चाय पीने का मन है। तेज़ हवाएं बारिश के साथ आईस-पाईस खेल रही है। बादलों की अफवाह का असर सीधा दिल पर हो रहा है। बारिश ने जो तुम्हारें खत पहूंचाए है उनकों पढनें के लिए मैनें पहले बूंदों के हवाले कर दिया है तुम्हारी बेरुखी की स्याही थोडी नमी सोख कर बह रही है मै उसे छू कर अपनी अनामिका से लिफाफे पर स्वास्तिक बनाता हूं इसके बाद तुम्हारें तमाम उलाहनें भी पवित्र दिखने लगें है।
मेरे माथे पर नमी है दिल में खुश्की और आंखों मे तरावट कोई देखे तो साफ अनुमान लगा सकता है कि मै किसी की याद में हूं। मै बारिश को देखता हूं और हवा के कान में मंत्र फूंकता हूं मै चाहता हूं बारिश तब तक न थमें जब तुम तुम्हारे मन के गीले होने की खबर बादल मुझ तक न पहूंचा दें।
अभी सोचा चाय और बारिश दो अजीब से बहानें है जिनके जरिए तुम्हारें आंगन में मै गाहे बगाहे दाखिल होता रहता हूं जबकि आजतक न वक्त पर चाय मिली है और न बारिश। आज की बारिश में तुम्हारे गीले तौलिए की कसम खाकर कह सकता हूं मै बूंदों के बीच खडा जरुर हूं मगर भीग नही रहा हूं। मै केवल कुछ बातें सोच रहा हूं बारिश मे भीगनें के लिए थोडा लापरवाह होना पडता है सोचकर केवल हंसा जा सकता है क्योंकि रोने की भी अकसर कोई वजह नही होती है। मेरे पास भींगने की तमाम वजह है और बारिश से बचकर अन्दर कमरें में दाखिल होने की एक भी वजह मेरे पास नही है क्योंकि वहां चाय के साथ तुम मेरी प्रतीक्षा में नही हो। तुम फिलहाल कहां पर हो यह बात मुझे बारिश बादल हवा बूंद किसी ने भी नही बताया है।
कुछ बूंदे मेरी त्वचा के तापमान से आहत है उन्हें मेरे मनुष्य होने पर सन्देह है वो आपस में गुपचुप ढंग से बात करती है और बादलों पर ताने कसती है कि उन्हें मैदान में भी पहाड पर क्यों पटक दिया है। ठंडी हवा मेरे कान के सबसे निचले हिस्से को मन्दिर की घंटी की तरह हिलाती है मगर वहां से कोई ध्वनि नही निकलती है हवा को मेरे कान के समाधिस्थ होने पर सन्देह है इसलिए वो बार बार तुम्हारा नाम लेती है ताकि मेरी तन्द्रा टूट सके।
बारिश का गीलापन मन के गलियारें में आकर एक छोटी नदी बन जाता है फिर यह नदी आंसूओं का एक न्यूनतम जलस्तर को बनाए रखनें में मदद करती है मगर इतनी तरलता के बावजूद भी मन की बंद गलियों से बाहर निकलनें के लिए आंसूओं को रास्ता नही मिलता है वो अन्दर ही मेरे लिए पर्याप्त नमी का इंतजाम करते करते सूख जाते है मेरा हृदय इसलिए भी सबसे खारा है यह राज़ आज तुम्हें बारिश के बहाने से बता देता हूं।
बारिश आई है मेरे मन का पंचाग इसकी वजह के लिए ग्रहों,नक्षत्रों की गणना करते हुए तुमसे दूरी की प्रकाशवर्ष में कालगणना में लग गया है मगर एक बडी बात है मेरे पास न दशमलव है और न मेरे पास शून्य है ये दोनों अंक तुमने मुझसे कभी उधार लिए थे मगर आज तक नही लौटाए है इसलिए मेरा अनुमान अक्सर गलत सिद्ध हो जाता है और तुमसें दूरी घटती बढती जाती है।
फिलहाल, बस इतना ही निवेदन करुंगा अगली मौसमी बारिश से पहले मुझे मेरा दशमलव और शून्य लौटा देना ताकि किसी बेमौसमी बारिश में तुम्हारी भौतिक दूरी का सही से आंकलन करके मैं कुछ सही भविष्यवाणी कर सकूं।
बाहर की बारिश थम गई है मगर अन्दर एक झडी लगा गई है वो कब थमेगी कह नही सकता हूं मेरे कान थोडें ठंडे हो गए है और हथेलियां गर्म तुम्हारे हाथ की चाय तो अब मिलने से रही इसलिए खुद ही जा रहा हूं एक कप चाय बनानें ताकि घूंट घूंट तुम्हें याद करता हुआ भूल सकूं।


‘बेमौसमी बारिश'

No comments:

Post a Comment