Wednesday, June 3, 2015

तीसरे पहर की बारिश

ये तीसरे पहर की बारिश है। कुछ ग्राम बूंदे तपती धरती पर शगुन के छींटे मारने आई थी। उनके पास आश्वस्ति के पैगाम थे। बादल दरअसल मौसम की चालाकियों में फंस गए है फिर भी वो अपनापन बचाकर रखना चाहतें है इसलिए धीरे धीरे टूट रहें हैं। धरती मौन है उसने थोडी देर के लिए आंखे मूंद ली है। जो बूंदे सबसे पहले धरती पर आई वो इतनी खुश नही थी वो तब आना चाहती थी जब धरती की त्वचा से शिकायत की गर्द उड जाए फिलहाल वो अनमनी इधर उधर गिर कर दम तोड रही है उनकी आंखों में हवा की खुशामद साफ नजर आती है।

तीसरे पहर की बारिश से शाम भी उदास है क्योंकि उसे अब चुपचाप रात के हवाले होना पडेगा आसमान में उडते कुछ परिन्दे दिशाभ्रम का शिकार हो अजनबी पेडों पर आश्रय तलाश रहें है। ये पेड किसी का इंतजार न करने के लिए शापित है इसलिए इन्हें किसी परिन्दे को देखकर रत्तीभर भी खुशी नही हुई है उनकी शाखें थोडी शर्मिन्दा जरुर है।

इस बारिश में कुछ शिकायतों के रंग भी घुले है इसलिए माथा धीरे धीरे ठंडा हो रहा है मगर कान अभी तक गरम है। इस बारिश के लहज़े अजनबी है इसलिए मै कमरें में ही बैठा हूं जब चाहने वाला कोई न हो तब बारिश के खतों की तलाशी लेने का मन नही होता है। बारिश के पास चाहतों के कुछ बैरंग खत है मगर वो उन्हें वापिस अपने साथ ही लेकर जाएगी उसने उनके पतें दिखाने से साफ इंकार कर दिया है।

कमरें की सीलन में बेहद मामूली इजाफा हुआ है। दीवार पर जमी धूल चिपक कर किसी पेंटिंग का आकार लेती है जैसे बिस्तर पर कुछ आडी तिरछी सिलवटें पडी हों मै इस पर थोडा विस्मय से मंत्रमुग्ध होता हूं। खिडकी से बाहर झांकता तो देखता हूं एक बादल के टुकडे के पीछे चांद झांक रहा है वो धरती की गर्दन पर एक स्वास्तिक का निशान बनाना चाहता है मगर बारिश के चलतें धरती के भीगें बालों ने उसका उत्साह कमजोर कर दिया है। वो अपना बचा हुआ आत्मविश्वास खो बैठा है।

ये तीसरे पहर की बारिश है इसलिए मेरा मन तीन हिस्सों में बंट गया है एक मेरे पास है एक तुम्हारे पास है और एक धरती की उदासी पर बारिश की मनुहार देख रहा है। समानांतर रुप से इन तीनों के पास अपने बंटे होने की कुछ पुख्ता वजहें है इसलिए मैने तीनों से बातें करनी बंद कर दी है क्योंकि यदि मै एक बार बातों में लग जाता तो फिर धरती और बारिश के विदा गीत में कोरस न बन पाता है। मेरे पास आश्वस्ति के स्वर नही है धमनियों में ध्वनि का बोध कमजोर है मगर मैं मध्य का एक सुर पकड कर कोरस बन खुद को इस तीसरे पहर की बारिश में शामिल कर रहा हूं। इस पहर की यही मेरी अधिकतम उपलब्धि है।

‘बारिश: तीसरें पहर की

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