Thursday, March 9, 2023

यात्रा

 एक सुरंग है। अंधी सुरंग। उसमे दाखिल होते वक्त कोई कौतूहल नहीं था। विकल्पहीनता भी न थी। एक सम्मोहन कहा जा सकता है जो अनायास घटित हुआ था। और मैं उसमे लगभग उत्साह के साथ के दाखिल हुआ। लगभग इसलिए क्योंकि बीच रास्ते में एक दफा ख्याल आया कि यदि यह सुंरग कहीं भी न खुली तो? क्या मैं वापस लौट सकूंगा। शायद नहीं। 

प्रेम के अनुभव कहने के लिए प्रतीकों का सहारा लेना पुरानी रवायत है। ऐसा क्यों है? शायद इसलिए कि एक समय के बाद प्रेम हमें रूपांतरित कर देता है और हम अपने नए रूप के साथ तादात्म्य स्थापित करने में थोड़ी असहजता भी महसूस करते हैं।

जिस रास्ते पर चलते हुए आपका खोना तय हो और जिस पर आपके पदचिन्ह के निशान किसी दूसरे के लिए मार्कर न बनते हो उसे रास्ते पर चलते जाना एक दिलचस्प चीज है। बाज दफा इस बात का इल्हाम हमें होता है कि उस पार पीड़ा है,संत्रास है,वेदना है मगर वर्तमान के अनुराग का लोभ हमारे कदमों की ऊर्जा बन हमें उस तरफ ले जाने का काम करता है।

सबकुछ जानते हुए भी खुद को एक संभावित पराजय या दुर्भिति के लिए खुद को मनोवैज्ञानिक तौर पर तैयार करने की जुगत बनाते जाना उस यात्रा का अनिवार्य हिस्सा थी।पहले लगता था कि मेरे पास औचित्य और बुद्धि का अद्भुत संस्करण मौजद है जिसके बल पर मैं यह तय कर सकता हूँ कि मुझे कितना संलिप्त होना है और कितना निरपेक्ष रहना है मगर वस्तुतः यह एक कोरा भरम था। एक समय के बाद हम केवल साक्षी हो सकते है प्रवाह के समक्ष बहने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं होता है।

किसी पहाड़ी गदेरे की फिसलन में फिसलने जैसा एक अनुभव हुआ और अपनी मान्यताओं की उबड़ खाबड़ घाटियों से फिसलता हुआ मैं एक अनजान गंतव्य की और तेजी से बढ़ रहा था। मेरे कंधे भले ही जिम्मेदारियों से चोटिल थे मगर रास्ते के पत्थरों के एकांत से मैंने कुछ हौसला उधार लिया था। कुछ जंगली वनस्पतियों ने मेरी चोटों का उपचार किया मगर उनकी गन्ध ने मुझे बताया कि मैं जिस रास्ते पर पर बहता हुआ जा रहा हूँ वह उस मुहाने पर खत्म होता है जिसके बाद रास्ते नहीं है।

मनुष्य ऐसा जानबूझकर क्यों करता है? यह सामान्य ज्ञान का प्रश्न हो सकता है मगर इसका उत्तर जीवन के अनुभव से नहीं मिलता है। वो एक गन्ध,एक पुकार या एक अज्ञात की स्वरलहरी होती है जिसके कारण हम अपरिहार्य रूप से घटित होने वाले दर्द को भूलकर उस अज्ञात के मोहपाश में बंध जाते हैं और उस दिशा की तरफ बढ़ने लगते हैं जहां रास्ते में वह एक सुरंग हमारा इंतज़ार कर रही होती है।

प्रेम या अनुराग की आंतरिक दुनिया जितनी जीवंत और वैविध्यपूर्ण होती है उतनी ही बाहर की दुनिया में उसका एक असम्भव मिलान उपस्थित होती है।हम दृष्टा और साक्षी होते है और उस दर्द के गवाह को हमारा इंतज़ार पहले दिन से कर रहा होता है, शायद तभी शायर 

वामिक़ जौनपुरी ने यह शे'र कहा था-

'जहां चोट खाना, वहीं मुस्कुराना

मगर इस अदा से कि रो दे जमाना

©डॉ. अजित 


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