Tuesday, September 13, 2022

जाने वाला जाने के बहाने तलाश लेता है

 

जाने वाला जाने के बहाने तलाश लेता है

--

मानवीय सम्बन्धों की एक दिलचस्प बात यह है कि यह हमेशा नूतनता की चाह रखता है। एक सी बातों से ऊब कर हम कुछ नया चाहते हैं। भले ही यह नई बात एक लड़ाई से क्यों न शुरू होती हो। कई बार एडिटिंग के चक्कर में हम एक खूबसूरत और सहज तस्वीर को बेज़ा खराब कर बैठते हैं। आना और जाना दो नियत प्रक्रियाएं हैं। मन का काम है कि वो हमें हमेशा एक नया टास्क देकर रखना चाहता है। और प्राय: ये टास्क मन की असुरक्षाओं से जुड़ें होते हैं।मनुष्य को हमेशा जुते हुए देखना मन प्रिय शगल है।

किसी को पाना बड़ी बात नहीं है किसी को खोना भी एक स्वाभाविक घटना है मगर किसी को संभाल कर रखना एक कौशल है जो बहुत मुश्किल से अर्जित होता है। प्राय: हम अपने पूर्व के अनुभवों को अंतिम सच की तरह मानने के अभ्यस्त होते हैं। ऐसे मे किसी नये अनुभव को स्पेस मिलने की संभावना न्यून हो जाती है। वास्तव में यथार्थ की दुनिया सपाट होती है और हमारी ज़िंदगी कुछ कल्पना और कुछ भ्रम के सहारे ही आगे बढ़ती है।

जब आप भावनात्मक रूप से अस्थिर होते हैं तो प्राय: मन में शंकाओं को भरपूर स्थान मिलता है कि कहीं ऐसा न हो कहीं वैसा न हो। मनमुताबिक चीजें ज़िंदगी मे कभी घटित नहीं होती है। हमें अपने जीवन की असुविधाओं के मध्य ही कुछ यूटोपिया रचना होता है और यह ठिया ही हमारे सुस्ताने के काम आता है।

मूलत: दुनिया इम्परफ़ेक्ट है और ऐसा होना ही इसकी खूबसूरती है। मगर किसी को संपूर्णता में महसूस करने के लिए हमें सबसे पहले उसके अधूरे हिस्सों को आत्मसात करना जरूरी होता है। यदि हम किसी के अधूरेपन को नहीं समझ सकते हैं तो हम उसे संपूर्णता मे कभी नहीं जा सकेंगे।

अब बात जाने वालो की, जैसा मैंने शीर्षक मे लिखा कि जाने वाला शख्स हमेशा जाने का एक आकर्षक बहाना तलाश ही लेता है। उस बहाने पर अकेले मे अफसोस किया जा सकता है और भीड़ में हँसा जा सकता है। इसलिए जो जा रहा है उसे रोकने की कोशिशें प्राय: कारगर नहीं होती है। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि जाने वाले शख्स को रोकना नहीं चाहिए मगर इतना जरूर है जिसे जाना है वह हर हाल मे जाकर रहेगा उसे आपकी कोई कातर पुकार नहीं रोक सकेगी क्योंकि उसकी जाने को लेकर की गयी प्रतिबद्धता रोज एक बहाने से मजबूत होती है।

हाँ यह तय है कि किसी का जाना तकलीफदेह जरूर होता है मगर हम मनुष्यों की निर्मितियाँ तकलीफ के साथ जीने की ही बनी हुई है तभी तो जब सब कुछ सहज और सुखपूर्वक चल रहा होता है तो हमें दुख की अनुपस्थिति का दुख होने लगता है।

इसलिए जाने वाले ध्यानस्थ होकर देखा जा सकता है एक बिन्दु के बाद वो क्षितिज की तरह दिखने लगता है और हम अपनी दृष्टि की सीमा मान आंखे फेर लेते हैं।

© डॉ. अजित

No comments:

Post a Comment