Monday, March 13, 2023

अपात्र

 उसके लिए मैं सुपात्र था

कुछ-कुछ अंशो में शायद मैं था भी। मगर वस्तुतः मैं पात्र-अपात्र के मध्य कहीं किसी बिंदु पर मुद्दत से किसी उपग्रह की भांति टिका हुआ था। मेरे पास मन के संचार केंद्र को भेजने के लिए बड़े धुंधले मानचित्र थे इसलिए उनके भरोसे कोई एक सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती थी। 

प्रेम में हीनताबोध नहीं उपजता है हीनताग्रन्थि वाला व्यक्ति कभी प्रेम नहीं कर सकता है मगर मैं स्वतः ही आत्म मूल्यांकन करने लगता और इस पात्र-अपात्र की बाईनरी से खुद को देखता। उस वक्त मेरी घड़ी दो अलग-अलग वक्त बताती और मैं हमेशा गलत समय को सही मानता।

एक क़िरदार के अंदर इतने किरदार गडमड थे कि अक्सर यह लगता कि प्रेम जिस किरदार से मिलने आया था वो हमेशा कहीं दूर अकेला दुबका बैठा हुआ है। आत्मदोष और अन्यमनस्कता इस कदर तारी थी कि अवचेतन में इस बात की गिल्ट रहती कि मेरी व्यवहारगत असमान्यताओं के बावजूद कोई कैसे मुझसे प्रेम कर सकता है? कहीं मैं किसी किस्म की विकल्पहीनता का तो परिणाम नहीं हूँ आदि-आदि।

जब आप वक्त के आगे-पीछे चल रहे होते हैं तो अपने होने को एक कुसमय का सच स्वीकार कर जीने की आदत विकसित करते हैं। प्रेम की कामना रहती है मगर प्रेम में चोटिल होने का डर भी सतत बना रहता है। किसी भी किस्म का गहरा अनुराग या केयर समानांतर काम्य और अकाम्य बनी रहती है क्योंकि आपको पता होता है कि आप प्रतिदान के मामले में लगभग शून्य है। आपके हिस्से का प्रेम आपका वक्त कब का चट कर चुका है।

मैं सुपात्र नहीं था मगर कुपात्र भी न था हाँ मैं अपात्र जरूर था। जब-जब उसका दिल मेरे कारण दुखा मेरे इस अपात्र होने की पुष्टि होती गई और यह मलाल बढ़ता गया कि मैं क्यों किसी के जीवन में मानसिक कष्ट का निमित्त बना हूँ। और मैं किसी मांत्रिक की भांति उसके जीवन में एक आदर्श काल्पनिक प्रेमी का आह्वाहन करने लगता यह बात तकलीफ देती थी मगर मैं यह करता था।

दरअसल, खुद को अपात्र समझना या बताना उस तात्कालिक गिल्ट से उबरने का एक जतन भर था जिसके चलते मुझे अक्सर यह लगता कि मेरे साथ कोई खुश नहीं रह सकता है। मै अपनी छाया और दुःख के संक्रमण से उसे बचाना चाहता था कम से कम यह बात जरूर प्रेम के पक्ष में जाती थी। 

उसके लिए मैं सुपात्र था इस कथन में दोष हो सकता है मगर वह मेरे लिए पात्र-सुपात्र से इतर एक अनिवार्य ईश्वरीय हस्तक्षेप की तरह थी जिसके कारण मैं यह जान पाया कि खुद से प्रेम करने की आदत को एक अतिरिक्त योग्यता की तरह देखना बन्द करना चाहिए। उसके कारण मुझे पहली दफा यह अहसास हुआ कि मैं प्रेम में जो जवाबदेही महसूसता हूँ वह इतनी ईमानदार जरूर है कि मैं आईने में खुद की पीठ देख सकता था जिस पर पलायन नहीं लिखा था।


©डॉ. अजित

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