Tuesday, April 11, 2017

ईश्वर

दृश्य एक:

विल्सन आज थोड़ा उदास है. कल उससे कैथरीन ने कहा अब शायद हमारे अलग होने का वक्त आ गया है. ‘शायद’ एक शब्द ऐसा है जिससे विल्सन को बड़ी उम्मीद है वो मन ही मन कैथरीन को धन्यवाद देता है कि उसने यह नही कहा कि ‘ हमारे अलग होने का वक्त आ गया है’ मगर ये धन्यवाद ज्ञापन उसको हौसला नही दे पार रहा है उसे लगता है शायद का प्रयोग एक विनम्रता भर है वरना असल बात यही है अब कैथरीन अलग होना चाहती है.
विल्सन फिलहाल यह सोच रहा है आदमी इस मिलने और अलग होने की प्रक्रिया का हिस्सा आखिर क्यों बनता है? वो समय के षड्यंत्र को देखता है और यह तय नही कर पा रहा है कि वो कैथरीन से मिलने से पहले कितना खुश था? उसे साथ के दौरान की ख़ुशी किस किस्म की थी? और अब जब कैथरीन नही रहेगी क्या वो कभी खुश रह सकेगा?
तभी उसके पास एक भिखारी आता है वो शायद भूखा है विल्सन से खाना खिलाने के लिए बोल रहा है विल्सन के पास पैसा है मगर आज मन नही है किसी को कुछ भी देने का वो खुद में सिमटा हुआ बैठा है और यह सोच रहा है कि इस अलग होने को कैसे स्थगित किया जा सके इसलिए वो भिखारी को अनसुना कर देता है, भिखारी को यह बात ठीक नही लगी मगर फिर भी उसने फिर विल्सन को टोकना उचित न समझा मगर जाते वक्त वो मुडा और दूर से ही चिल्लाकर उसने विल्सन से कहा ‘जरूरत मनुष्य दयनीय बना देती है दया और प्रेम एक साथ खड़े नजर आ सकते है मगर वो दोनों साथ बैठ नही सकते है’.
विल्सन को भिखारी की बात फिलासफी के कोट के जैसी लगी मगर उसने उसका कोई जवाब नही दिया और मन ही मन उसकी बात में अपनी इतनी बात जोड़ी-
‘जरूरत मनुष्य दयनीय बना देती है दया और प्रेम एक साथ खड़े नजर आ सकते है मगर वो दोनों साथ बैठ नही सकते है बावजूद इसके जरूरत को आदत में तब्दील होने से बचना चाहिए यदि कोई बच सके तो’

दृश्य दो:

सिटी कैफे में कैथरीन आज अकेली बैठी है उसका अपना एक कोना है प्राय: वह वही पर बैठती है. कैफे में आज भीड़ नही है उसकी बगल की सीट पर एक दम्पत्ति बैठी है. कैथरीन के पास एक किताब है जो ईश्वर के अस्तित्व से जुड़ी बहस पर आधारित है. कैथरीन ने बुकमार्क उस पेज पर लगा दिया जहां पर यह लिखा हुआ था ‘ईश्वर मनुष्य की एक सुंदर उपकल्पना है जिसके भरोसे वो विश्वास को दुनिया में सुन्दरतम रूप में बचा पाने में समर्थ हुआ है’
ईश्वर के अस्तित्व की बहस से अब उसे ऊब हो रही है उसने अपना चश्मा उतार कर किताब पर रख दिया और कॉफ़ी ऑर्डर की.
बगल में बैठी दम्पत्ति घर के बाहर मिलने वाले एकांत पर बात कर रहे है वो अपने अतीत में खो जाते है और पुराने दिनों को याद करने लगते है जब वो दोनों पति पत्नी नही थे. उनकी बातों में कोई नूतनता नही है मगर कैथरीन को उनकी बातें किताब से ज्यादा चमत्कारिक लग रही है न चाहते हुए भी उनकी बातें सुनने में उसकी दिलचस्पी बढ़ गई है.
वो दोनों पति पत्नी कोई बहस नही कर रहे है बस अपने अपने अतीत को याद करके खुश हो रहे है उनके पास भविष्य की चिंताए फिलहाल नही है. स्त्री कहती है कभी कभी लगता है कि विवाह अपने साथ अकेला नही आता है वो साथ में बच्चे भी लाता है एक उपद्रव की शक्ल में...इस बात से पुरुष उतना सहमत नही है मगर फिर भी वो प्रतिवाद नही करता है. पुरुष पूछता है अच्छा यह बताओं क्या अब हमारा प्यार अब वैसा ही है जैसा कभी हम पहले दिन मिले थे? स्त्री कहती है नही वैसा बिलकुल नही है अब मुझे तुम्हें एक सीमा तक जान गयी हूँ इसलिए अब प्यार वैसा रहना संभव नही है और मेरे ख्याल प्यार को एक जैसा रहना भी नही चाहिए. एक जैसा प्यार ठहरे हुए पानी की तरह सड़ जाता है.प्यार बदलता नही है हां रूपांतरित हो जाता है अब मैं तुम्हें नापसंद और पसंद एक साथ करती हूँ.
स्त्री पूछती है क्या प्यार कोई दैवीय चीज़ है? पुरुष इस पर थोड़ा सोचता है और फिर कहता है मेरे ख्याल से नही ! मनुष्य के जीवन में कुछ भी दैवीय नही है सब कुछ मानवोचित ही है. दिव्य या ईश्वरीय बता कर हम उसे संरक्षित करने की कोशिश जरुर करते है क्योंकि ईश्वर से जुडी हर चीज प्रश्नों से परे हो जाती है. हम प्यार को प्रश्नों से बचाना चाहते हैं इसलिए शायद उसे दैवीय कहते है.
शायद शब्द सुनन के बाद स्त्री थोड़ी मुस्कुरा देती है.
कैथरीन ने यह बातचीत सुनी और जल्दी से अपनी कॉफ़ी खत्म की और घड़ी देखते-देखते विल्सन को कॉल लगाया मगर विल्सन का फोन बंद है शायद उसने किताब के शीर्षक को दोबारा पढ़ा और वहां से चली गई.


© डॉ.अजित   

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