Friday, January 20, 2017

उसने कहा था- दो

उसने कहा था
रिश्तों की कभी नैसर्गिक मौत नही है !

तब मैने कोई प्रतिवाद नही किया था शायद तब मै जीवन के नशे में था इसलिए मौत के विमर्श में उलझना नही चाहता था। जीवन और मृत्यु के प्रश्न वैसे भी बेहद निजी किस्म के होते है। मृत्यु की महानता पर मुग्ध हुआ जा सकता है मगर एक घटना के तौर मृत्यु बाह्य तत्वों के लिए कब सुखद रही है भला?

इन दिनों मैं सोचता हूँ नैसर्गिकता आखिर क्या है? क्या जीवन में घटनाक्रमों को सहजता से घटने देने में यकीन रखना नैसर्गिकता है या फिर कुछ मान्यताओं के मध्य किसी आत्मीय रिश्तें को अकेला छोड़ देने को भी  नैसर्गिक कहा जा सकता है।

दिल दरअसल बड़ा मतलबी होता है वो दिमाग के तमाम सवालों को टालता रहता है उसे साथ चाहिए शायद कोई एक साथी भी जिसके साथ वो हंस सके रो सके। दिमाग की अपनी गणनाएं है वो रिश्तों के भविष्य के प्रश्नों में उलझाकर वर्तमान में उस मौत की भूमिका रच देता है जिसको बाद अप्रत्याशित समझ खुद को कोसा जा सकता है।

किसी भी रिश्तें की नैसर्गिक मौत शायद इसलिए नही होती क्योंकि हमारा चुनाव उसे दुखांत के जरिए विस्मृत करने का होता है या अस्तित्व का हस्तक्षेप कुछ ऐसी निर्मितियां बनाता है जिसे सोचकर विलग होने के कारणों का औचित्य सिद्ध किया जा सके।

नैसर्गिक न होना औचित्य के लिए अनिवार्य है यदि मृत्यु नैसर्गिक हो तो शोक की तीव्रता में सार्थकता के स्तर पर अंतर आ जाएगा। जो छूट गया है उसमें उस छूटे जाने की आत्मप्रवंचना जीवनपर्यन्त प्रताड़ित करती है। किसी रिश्तें की नैसर्गिक मौत न होने का एक अर्थ यह भी निकाला जा सकता है उसमें दीर्घायु की परिकल्पना पहले दिन से ही नही थी।

जिस साथ का छूटना जन्म के साथ आया हो उसके लिए कुछ भी अनैसर्गिक नही है मनुष्य की चाह के रूप में वो एक नियोजित हस्तक्षेप है वो समानान्तर हमारे साथ पलता है। एकदिन स्वतः आत्मघाती हो हमारी सबसे प्रिय वस्तु को हमसे मांग लेता है और हम अतिशय परिपक्व होने का अभिनय करते हुए इस सच को स्वीकार कर लेते है कि ये तो एकदिन होना ही था।

रिश्तों की नैसर्गिक मृत्यु नही होती है इसमें एक पंक्ति यह जोड़कर कि ये तो एकदिन होना ही था हम मृत्यु की वेदना कम नही कर सकते मगर इसके अलावा और बचता भी क्या है जब देखते ही देखते दृश्य से एक चित्र नेपथ्य में चला जाता है और स्मृतियां सही गलत के मुकदमें में हमे आजीवन कारावास की सजा सुनाकर खुद स्मृतिलोप को चुन लेती है।

© डॉ.अजित

#उसनेकहाथा

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