Wednesday, December 14, 2016

नदी

दृश्य एक:

पहाड़ झरनें से कहता है मेरे तलवे पर एक पता लिखा है उसे नदी के पास पहुँचा देना।
झरना जवाब देता है नदी उसे अपना दोस्त नही मानती इसलिए वो नदी से मिलने जाने में खुद के अंदर आकर्षण का अभाव पाता है।
पहाड़ झरने की पीठ पर आंसू से आग लिखता है जो नीचे जाकर पानी बन जाती है मगर पत्थर और शैवाल उस पानी में तपन महसूस करते है।

दृश्य दो:
नदी अपने किनारे से कहती है देखना मेरी आँख में कुछ चला गया है। किनारा कहता है ये तो असल के आंसू है मगर आँख में कुछ नही है।
नदी किनारे को उसी पल छोड़ कर आगे बढ़ जाती है। किनारों की आँख में अधूरा काजल पड़ा है उनकी माँ ने उलटे दिए पर स्याही निकाली थी मगर उनकी उंगलियों की कोमलता अनुपस्थित हो गई है इसलिए उन्हें डर था  कहीं खुद ही आँख को जख्मी न कर दें।
जिसकी आँख जख्मी है वो बेफिक्र है उसे बताने वाला कोई नही है।

दृश्य तीन:
आसमान आलथी-पालथी मारकर बैठा है हवा उसके बालों में हाथों से कंघी कर रही है। आसमान जमीन के कान को देखकर ये अनुमान लगा रहा है कौन सा कान छोटा है और कौन सा बड़ा।
आसमान धरती के बोझ को तोलना चाहता है इसलिए कान धरती की नाभि पर लगा देता है अंदर कोई कोलाहल नही है। आसमान बाहर के कोलाहल पर विस्मय से भरता है वो अपनी आँखें बंद लेता है। पहली बार ऐसा होता है कि आसमान को आँख बंद करने पर चक्कर नही आए। इस पर आसमान हंसता है तभी बारिश हो जाती है। धरती आसमान की पीठ देख पाती है बस।

©डॉ.अजित

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