Tuesday, December 13, 2016

बातें

दृश्य एक:
पैरिस के एक ब्यूटी सैलून में दो स्त्री आपस में बात कर रही है।
क्या तुम मिरर पर यकीन करती हो?
नही मैं खुद पर थोड़ा यकीन करती हूँ
यकीन भी क्या थोड़ा या ज्यादा हो सकता है?
मेरा मतलब था कभी यकीन होता है कभी नही
अच्छा ! ख़ूबसूरती क्या मन की हो सकती है?
आई डोंट थिंक सो !
और तन की?
खूबसूरती तन की नही होती,तन को बस नोटिस किया जा सकता है
अगर मै कहूँ तन को केवल जज किया जा सकता है?
मन को जज किया जाता है तन को डिफाइन किया जा सकता है
तो क्या मन को डिफाइन नही किया जा सकता?
शायद नही
अच्छा आख़िरी बार बेफिक्री में तुमने मिरर कब देखा था?
अभी अभी देखा है तुम्हारी आँखों में
आँखें क्या मिरर हो सकती है?
आँखों को मिरर नही कहना चाहिए ऐसा कहना कम्प्रेजन करना होगा
फिर क्या कहना चाहिए?
कुछ नही कहना चाहिए बस प्यार से आँख में देखना चाहिए
तुम यहां किस लिए हो? खूबसूरत दिखने के लिए?
नही मैं यहां आकर देखना चाहती खूबसूरती क्या रची जा सकती है?
तो क्या पाया तुमनें
मैं यहां कुछ पाने नही खोने आती हूँ
हम्म !

दृश्य दो:
ये अफ्रीकी देश की एक सुबह है। कॉफी उबल रही है। दो स्त्रियां लोकगीत गुनगुना रही है। प्रतिक्षा उनकी आँखों में पढ़ी जा सकती है। एक स्त्री कहती है धूप से कुछ अनुमान नही लगता है ये समय की बंधुआ मजदूर बिलकुल नही है ये आसमान की बेटी है जो धरती पर खेलने आती है हम इसे देख सकते है मगर छू नही सकते।
इस पर दूसरी स्त्री मुस्कुराती है अनुमान लगाना मनुष्य की एक सुविधा है सुख के अनुमान पर दुःख विलंबित किया जा सकता है। हवा के अनुमान पर बादल को नाचते हुए देखने की आस पाली जा सकती है।
तभी एक पुरुष आता है वो कॉफी मांगता है
दोनों स्त्रियां एक स्वर में सोचती है माँगना पुरुष की एक सुविधा है
और देना स्त्री का सुख
दोनों स्त्री आसमान की तरफ देखती है और अपने अपने अनुमान वापिस आसमान के पास रवाना करती है।
अनुमान से मुक्ति स्त्री की आदि कामना है इसी को गीत बनाकर गुनगुनाने लगती है। ये विश्व का एक लोकप्रिय लोकगीत है जिसे किसी भी भाषा में गुनगुनाया जा सकता है।

© डॉ.अजित

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