Saturday, July 30, 2016

याद शहर

आज तीसरे पहर जब उन्ही रास्तों से लौट रहा हूँ जिन पर तुम साथ थी तो मैंने पाया मेरा गला रुंध रहा है जानता हूँ इस बात में कोई कलात्मक या साहित्यिक गुणवत्ता नही थी मगर इसमें ऐसी सच्चाई थी जिसने मुझे कई घंटो के लिए चुप कर दिया है।

इस चुप्पी में मैं तुमसे बात करता रहा वक्त का सबसे क्रूर पक्ष यह भी होता है आप उसे रिवाइंड करके नही सुन सकते हां उसे गर्दन नीची करके देखने की कोशिश कर सकते है क्योंकि इसके लिए खुद के ही दिल में बार बार झांकना होता है।

जिस खिड़की पर मै फिलहाल बैठा हूँ वहां से रास्ता उलटा दौड़ता नजर आ रहा है मै रास्ते की आँख में रात देखता हूँ रात की आँख में तुम्हारी इमेज बनाने लगता हूँ ये देख रास्ता मेरी तरफ पीठ कर लेता है  मैं उसकी दौड़ती पीठ पर अपनी पलकें झटक देता हूँ मगर कुछ बूंदों को हवा ले उड़ती है वो कहती है इसकी जरूरत तीन रंगों में बंटे बादलों को ज्यादा है जब कल सुबह शहर में बारिश होगी तो इनकी नमी अपने ठीक पते तक पहूंच जाएगी।

मैं बादलों की तरफ देखता हूँ तो यादों की मुस्कान एक आग्रह करती है मगर यकीन करों उदासी मेरे लबो पर ऐसी आ बैठी है मानो न जाने कौन से उधार का तकादा करने आई हो।

छूटते लम्हों की कतरन की तुरपाई करता हूँ और एक छोटा रुमाल बना लेता हूँ बहुत देर से उसी रुमाल को हाथ में लिए बैठा हूँ कभी कभी उसे अपने कानों के पास ले जाता हूँ वहां तुम्हारी हंसी अभी लिपगार्ड के साथ चाय पी रही है इसलिए कान को छूता नही हूँ।

अभी बूंदाबांदी शुरू हो गई है शायद बारिश मुझे थोड़ा और उदास देखना चाहती है वो खुद बादलों से लड़कर आई है ठंडी हवा मेरे माथे पर अपनी अनामिका से लिखती है बी हैप्पी ! मैं कहता हूँ हम्म !

सड़क पर पेड़ो को जब झुका देखता हूँ तब खुद की समझाईश सारे तर्क ध्वस्त हो जाते है मै फिर उलटे पाँव दौड़ने लगता हूँ मगर रास्ता मेरे नीचे से निकल गया है इसलिए अब जिस दिशा में मैं जा रहा हूँ वो मुझे कहां ले जाएगी ये कहना जरा मुश्किल होगा। शायद एक शहर या घर तक मै पहुँच जाऊं मगर मेरे मन को आने में अभी वक्त लगेगा वो जिद करके उतर गया है मुझे नही पता उसे क्या साधन मिलेगा मगर वो तुमसे मिलकर जरूर लौटेगा ऐसा मेरा भरोसा है।

तो क्या मैं तक यूं ही बेमन के रहूंगा? अभी यही सोच रहा हूँ सोचते सोचते जब थक जाता हूँ खिड़की से मुंह बाहर निकाल लेता हूँ और आँखे बंद करके विस्मय से मुस्कुरा देता हूँ।
फ़िलहाल विस्मय यादों और सफर में एक जंग छिड़ी है जो मुझे कतरा कतरा बिखेर रही है मुझे इस पर कोई ऐतराज़ नही इस तरह से भी खत्म हुआ जा सकता है।

किस्सों और हिस्सों की बीच मैं करवट लेता चाहता हूँ मगर बगल में तुम्हारी छाया आराम से सो रही है इसलिए मै समाधिस्थ हो गया हूँ बेशक ये उदासी की समाधि अच्छी नही है मगर फ़िलहाल यही बस मेरे इर्द गिर्द अपनेपन से मंडरा रही है इसलिए मैंने बाहें फैला दी है।

'उदासी: कुछ अधूरे किस्से'

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