Saturday, May 7, 2016

फ़िल्मी बातें

शर्मिला टैगोर और दीपिका पादुकोण की मुस्कान और खिलखिलाती हंसी के बीच का पॉज़ बेहद क्लासिक किस्म का है अपनी इन दो कृतियों को यूं देखकर ईश्वर अपने हाथ चूम लेता होगा।
माधुरी दीक्षित के और विद्या बालन के आँखों के सवालों का जवाब खुद ईश्वर के पास भी नही होंगे।
परिणीति चोपड़ा की आवाज़ सुनकर फूलों के छोटे बच्चें जल्दी बड़े होने की जिद अपनी माँ से करते होंगे उसकी गले की खराश से झरनें अपने तल की चोट को सहन कर पातें होंगे।
तब्बु को उदास देख बादलों को भी डिप्रेशन हो जाता होगा वो धरती पर बरसनें से इनकार कर देते होंगे और आसमान में टुक लगाए दूसरी धरती तलाशतें होंगे।
माही गिल के आँखों में लगा काजल धरती पर सुख और दुःख का पाला खिंचता है जिस पर वक्त के मारें खुद से हारे मनुष्य उम्मीद की कबड्डी खेलतें होंगे।

'इतवारी ख्याल'
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पुनर्पाठ:

इस पोस्ट पर संवाद की श्रृंखला में कुछ अन्य अभिनेत्रियों के बारे में मेरी टिप्पणियाँ आई है मित्रों की सुविधा के लिए उन सब को मूल पोस्ट के साथ रख रहा हूँ।

" ऋचा चड्ढा की आँखें सवाली है जैसे उन्हें कुछ सवालों के संभावित जवाब पहले से ही पता हो। उनके वजूद से छुपना सम्भव नही हो पाता है वो हमारी पड़ताल करती है और लौट जाती है।

हुमा कुरेशी, एक बड़ी नदी से निकली एक छोटी नदी है जिसनें अपना रास्ता बदल लिया है उसनें पत्थरों से दोस्ती की मगर उन्हें अपनी जगह से हिलाया नही उसके किनारे अपने कुनबे से बिछड़ी चिड़ियाएं साल में एक बार साथ बैठ कर उदास गीत गाती है। हुमा में एक संतुलित वेग है जिसके सहारे और किनारे किनारे चलतें आप एकदिन इंसानी बस्ती तक पहुँच जातें है अपनी समस्त कमजोरियों के साथ।

कोंकणा सेन शर्मा, एक आवारा बदली की प्रतिलिपि है जो धरती के सबसे उपेक्षित कोने के बयान दर्ज करने के लिए भेजी गई है वो धरती के कान में सन्देश कीलित करती है तो धरती उसका हाथ पकड़ लेती है उसकी हंसी धरती के उपेक्षित समझे गए खरपतवारों की के बालों में कंघी करती है। कोंकणा का कद अनुमानों से मुक्ति का अघोषित पैमाना है जिसके कनवीक्षन से हम अपने मन त्रिज्या को बड़ी आसानी से नाप लेते है।

अनुराधा पटेल, की नाक धरती के मध्य पर खींची एक विभाजन रेखा है जिसके दोनों तरफ की दुनिया एक दुसरे से बिलकुल अनजान है दोनों दुनिया के आंसूओं का द्रव्यमान भिन्न है इसलिए उनके खारेपन में एक मिठास भी बहती है। अनुराधा की हंसी में सुख से उपजे दुःख के पोस्टकार्ड तह दर तह रखे मिलते है। उसकी पलक झपकनें के अंतराल में काल के कुछ कोण बड़ी चालाकी से बदल जातें है इसलिए जो नजर आता है वो आधा अधूरा होता है समय की प्रत्यंचा पर कसा हुआ एक आत्मिक सच का बेहद अलौकिक संस्करण वहां पढ़ा जा सकता है।"

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