Wednesday, May 4, 2016

आत्मकथ्य

समाज तो बाद में आता है सबसे पहले तो खुद के लिए ही सबसे बड़ा खतरा है मेरे जैसे लोग है जो टोटल अनप्रोडक्टिव है।
(व्यापक सन्दर्भों में।बिखरी रचनात्मकता जरूर फुटकर प्रोडक्टिविटी है)
कभी कविता में उलझें तो कभी गद्य का आलाप छेड़ते हुए कभी सरकारी नौकरी की दौड़ में बोझिल लाचार तो कभी खेती किसानी की फ़िक्र में गुम।
लोक संगीत की लहरियों के दीवानें तो महंगे बीयर बार में लाइव कन्सर्ट देखने के भी अभिलाषी। कभी जिम्मेदारियों के पैरहन में कैद तो कभी स्वघोषित औघड़ फक्कड़ फकीर किस्म के यायावरी की चाह में अटके हुए। देह से वृहद मन से लघु चित्त ने अनासक्त दिल से संवेदनशील।
न जाने किस अनजानी प्यास में भटकतें रोज़ खुद को तोड़ते जोड़ते हुए कभी कहीं दिल लगा लेते तो कभी कहीं कोई एक चीज़ जिसे लक्ष्य या जुनून समझा जा सके उसे लगभग रोज़ नकारते हुए आत्ममुग्धता में जीने के आदी।
किसी चीज़ का पीछा करने के लिए न कोई जोश न कोई जुनून न अनुशासन न समर्पण सब कुछ आधा अधूरा लिए कॉमन सेंस के जरिए जिंदगी जीते हुए मेरे जैसे लोग खुद के कम बड़े अराजक शत्रु नही है।
जिंदगी के लिए कम से कम एक रोग तो लाइलाज किस्म का पालना ही पड़ता है अफ़सोस हम एक भी न पाल पाए जो भी किया हिस्सों में किया अधूरेपन और अधूरे मन से किया। जी किया तो कुंडली बांचने लगे जी किया तो दर्शन की कुछ किताबें पढ़ ली हम मन के दास क्या वैयक्तिक जीवन में कोई क्रान्ति लाएंगे हमारी दशा एक योगभ्रष्ट योगी के जैसी ही है।
रश्क होता है उन लोगों से जिनके पास केवल और केवल एक ही जुनून है वो उसी के लिए जीते है उसी के लिए मरतें है एक हम है जिनका दावा अनगिनत क्षेत्रों में विशेषज्ञता का है मगर सच ये है कोई विशेषज्ञता हमारे पास नही है। हमारे पास कॉमस सेन्स की मदद से विकसित किए गए कुछ चालाक अनुमान है जो ऐसा प्रतीत करवा देंते है कि हम विशद ज्ञानी है।
सब कुछ इतना अस्त व्यस्त कि हमसे प्रेम करने वाले लोग नही समझ पातें इससे प्रेम करें कि इसकी उपेक्षा करें। अपेक्षाओं के बोझ तले दबे हम अपेक्षाहंता पुत्र है जिन्होंने इतने घरों पर अपने हाथ से शुभ लाभ लिख दिया कि हम खुद नही पहचान पातें है कि असल में हमारा खुद का घर कौन सा हैं।
यदि कोई एक जुनून होता तो निसन्देह हम आज उसके शिखर पर होतें मगर होता ही क्यूँ जब बेमाता ने हमारे जन्म के वक्त हकलाते हुए गीत गाए थे और हमारे माथे पर अपने अंगूठे से लिख दिया था जब तक जियोगे जहाँ भी रहोगे यूं उकताए हुए रहोगे।
बचना चाहिए ऐसे लोगो से जितना हो सके वरना एकदिन किसी काबिल नही छोड़ता इनका साथ।

'बक रहा हूँ जुनूँ में न जानें क्या क्या'

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