Friday, May 27, 2016

आवारा मन

यूरोप के एक बूढ़े शहर का सबसे पुराना चर्च है। पादरी अब सुबह शाम नही दोपहर को आता है। उसके हाथ में बाईबिल नही किसी बच्चे की पोयम्स की एक बुक है।
चर्च की घण्टी अब ईको नही करती है उसकी ध्वनि एकदिशा में आगे बढ़ती है मगर लौटती नही है। चर्च के बाहर एक छोटा लॉन है वहां बर्फ के नवजात शिशु घास के साथ नींद का अभ्यास कर रहें है हवा की लोरी उन्हें सुलाती है तो कुछेक घण्टों की धूप उनकी पीठ पर मालिश करती है।
जीसस अंदर बेहद अकेले है वो तस्वीर से निकल कर चर्च के पीछे बने कब्रिस्तान में सोई चेतनाओं को देखनें निकल गए है रोज़ रात वहां पाप पुण्य और अपराधबोध का उत्सव होता है।
चर्च की पियानों की कुछ कड़ियां ढीली हो गई है वो सूर को बीच में ही आवारा छोड़ देती है फिर प्रार्थना का पूरा ट्रेक आउट ऑफ़ ऑर्डर हो जाता है ये सुनकर मोमबत्तियां हंसते हंसते बुझ जाती है।
चर्च के अहाते में एक बूढ़ी औरत रोज़ शाम आती है वो जीसस को दिल खोलकर अपनी गलतियां बतानी चाहती है मगर वो अंदर नही जाना चाहती वो चाहती है जीसस उसके पास आकर बैठे और वो एक उदास गीत गाए और अंत में जोर से हंस पड़े वो चाहती है ईश्वर का पुत्र उसके आंसूओं को चखकर उन्हें सृष्टि का दिव्य पेय घोषित कर दें।
चर्च का वास्तु थोड़ा रहस्यमयी है उसकी दीवारें थोड़ी टेढ़ी हो गई है वो देखती है कि कुछ नव युगल दम्पत्ति प्रेम को बरकरार रखनें में असफल रहें ये सोच कर वो उदास हो जाती है वो चर्च के रोशनदानों से कहती है विवाह दुनिया की सबसे झूठी संस्था है।
चर्च अब थक गया है वो थोड़ी देर उकड़ू बैठना चाहता है मगर जैसे ही मनुष्य को मजबूर देखता है वो अपने आराम करने का विचार बदल देता है।
एक बूके चर्च में रखा है उसके फूल ताज़ा है मगर उनकी टहनी सूख गई है फूल की खुशबू कन्फेशन करना चाहती है कि उसका कौमार्य उसनें भंग किया जिसको वो बिलकुल प्रेम नही करती थी चर्च मना कर देता है तो वो टूटकर बिखर जाती है।
यूरोप के बूढ़े शहर का यह एक बूढ़ा चर्च है मगर इसकी अंदरुनी दुनिया अभी भी बेहद जवान है।

'आवारा मन'

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