Saturday, April 26, 2014

कुछ दोस्त

कुछ दोस्त कोरा मतलब पड़ने पर ही शिद्दत से याद आते है मुसीबत के वक्त में जब गर्दन शिकंजे में फंसी हुई होती है तब ऐसे दोस्त खुदा की माफिक याद आते है निजि तौर पर दुनियादारी और सम्बंध बचाने के शिष्टाचार में भी उनको इतना अपना मान लिया जाता है कि यदा-कदा ही इनसे बात हो पाती है लेकिन ऐन वक्त पर ऐसे यारबाश दोस्त काम आ जाते है और हमें मुश्किल दौर से निकाल लेते है और निकाल भी न पाए तो भी न जाने किस लिहाज़ के चलते अपनी जान तो लड़ा ही देते है जबकि कुछ दोस्त जो रोजमर्रा की जिन्दगी में सम्वाद से लेकर वाद-विवाद तक में शामिल रहते है जिनसे अक्सर मुलाक़ात होती रहती है लेकिन वो केवल हमारी शिकंजे में फंसी गर्दन के दर्शक भर हो सकते है या हमारे पुरुषार्थी होने के व्याख्याता परन्तु वो मुश्किल दौर में मदद करने की काबलियत नही रखते है। हर इन्सान की जिन्दगी में ऐसे दोनों किस्म के दोस्त होते है ये दोनों किस्म के दोस्त कभी आपस में नही मिल पातें क्योंकि इनके बीच में हम पहाड़ की भांति खड़े रहते है इनमे से एक को पहाड़ की चोटी दिखाई देती है तो दूसरे को मात्र घाटी । दोनों किस्म के दोस्तों की जरूरत इंसान को रहती है एक यह जरूरत ही दोस्त की खोज़ और दोस्ती का व्याकरण तय करती है।

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