Saturday, April 19, 2014

युद्ध

हर इंसान भरा हुआ है वह कहने के लिए तत्पर और व्याकुल प्रतीत होता है उनकी अभिव्यक्तियाँ जहर-अमृत के घोल में डूबी हुई आहें और कराहें है। विचार सोच और सम्वेदनाओं के अपने अपने साम्राज्य है हम में से कुछ का दावा चक्रवर्ती राजा होने या बनने का है जबकि कुछ अभी छोटी रियासतों के माफिक सियासत कर रहें है उनकी बात अपने को सुरक्षित करने और बड़े राजा की स्तुतिगान करने की अधिक प्रतीत होतीहै। यहाँ युद्ध जैसा उन्माद हमारे जीने का हिस्सा है अभिव्यक्ति के रणक्षेत्र में षडयंत्र,संधि,अय्यारी सब कुछ समानान्तर  चल रहा है। सामंती व्यवस्था के विरोध में जिनके गले बुलंद है वो खुद चाहते है उनकी बात की गुणवत्ता पर सिप्पेसलाहरों की पूरी फौज तैयार हो और अपनी जान लड़ा दें ताकि वे इस अभिमान में जी सके कि उनकी वाग्मिता वंचितों के हित में थी। देशभक्ति और बगावत दोनों के पैमाने लिखने और कहने से तय हो रहे है श्रेष्ठ विचार गहरी सम्वेदना और समूह की पीड़ा रचने के योद्धा अपने बख्तरबंद को कसते है बार-बार क्योंकि यह उनकी निजि कमजोरी के चलते ढीला हो जाता है।
अमात्य बैचेन है वह संधि प्रस्ताव की भाषा से सन्तुष्ट नही है क्योंकि उसमें अहम के हनन का न्यायोचित संतुलन नही सध रहा है।
इस दौर में, जहां सारी ऊर्जा सारा तन्त्र और यहाँ तक आपकी विजय दूसरे को विचार,सोच,सम्वेदना के स्तर पर ठीक उतना लाचार देखना चाहती हो कि वह आपकी बात पर लगभग निहत्था होकर आत्म समर्पण कर दें और आप उसे जीवनदान न देकर उसे हीनता का श्राप देकर अगले राज्य की चढाई की तैयारी में लग जाएं मै अपनी पराजय स्वीकार करता हूँ क्योंकि उधार के हथियारों से मै उसके लिए लड़ रहा था जिसके लिए मेरी निष्ठा सदैव संदिग्ध रही है मैंने हथियार डर कर नही डाले बल्कि मैंने अभी कुछ मौन लोगो को हम वाक् विलासी लोगो को देखकर हंसते हुए देखा है उनकी हंसी हमारी हंसी से बिलकुल अलग थी उनके हंसने में एक महत्वपूर्ण बात जो मुझे लगी कि वो केवल हंस रहे थे और हम अपने चेहरें की कसावट को हंसी समझ बैठे थे।
मेरे समय में कोई बुद्ध नही है और न मै अशोक जैसा वैचारिक क्रान्ता हूँ परन्तु मौन लोगो को देखकर  मेरी लिपि अस्त व्यस्त हो गई है मै शब्दों के विन्यास में चातुर्य भूल गया हूँ परन्तु मै अभी तक आत्म मुग्ध हूँ क्योंकि युद्धोन्माद में सबसे पहले मैंने उन्हें देखा जबकि ठीक उसी समय पर मेरी गर्दन पर एक तलवार थी परन्तु मै बच गया इसलिए यह लिख पाया।

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