Friday, April 18, 2014

रिपोर्ट

इस वक्त अपनी खेत की मेढ़ पर बैठा अपने स्मार्ट फोन से यह बात लिख रहा हूँ लेकिन महज़ स्मार्टफोन होने भर से आप स्मार्ट नही हो जाते गाँव के जीवन में यह बात साफ़ पता चलती है अब से एक घंटे पहले टीवी देख रहा था और टीवी पर खबरें।
बचपन से भूगोल की किताबों और हिन्दी के निबन्धों में देश को कृषि प्रधान पढ़ते लिखते और रटते आयें है लेकिन अब मुझे नही लगता यह देश कृषि प्रधान है सीधे-सीधे यह देश एक पूंजीप्रधान देश है अफ़सोस इस बात का भी होता है कि देश की सभ्यता एवं संस्कृति की रक्षा प्रचार प्रसार और अधिकार का कॉपीराईट एक ख़ास विचारधारा के पास है जिनका बुनियादी सरोकार देश की न नब्ज़ को जानता समझता है और उसकी प्राथमिकता में वो लोग है जिसे सीधे तौर भारतीय रह गए है जिनका इंडियनकरण नही हुआ है।
बात फिर से खबरों की, लगभग सभी न्यूज़ चैनल पर खबर चल रही है कि दिल्ली में हुई बारिश मौसम हुआ सुहावना विजुअल्स में लोग खुश दिख रहे है मस्ती करते हुए भी दिख रहे है यह महानगरीय जीवन का सच या नजरिया कह सकते है मगर ठीक इसके उलट कृषि प्रधान देश का मेरे जैसा किसान और मेरे गाँव के दूसरे किसान पिछले दो दिन से इस सुहावने मौसम से आतंकित है गाँव के बुजुर्ग अपनी स्मृतियों के हवाले से बता रहें है ऐसा 'सम्बत्त' (साल) पहली बार देखा है हमारी पारस्परिक चर्चाएँ भी कुदरत के इस बदलते मिज़ाज को लेकर चिंता का ही विमर्श है परन्तु मेरे और मेरे आसपास के लोगो के पास कोई तन्त्र नही है कि वो किसी मौसम वैज्ञानिक से अपनी चिंताएं सांझा कर सके।
टीवी मौसम के सुहावने होने की ख़बर दिखाए इससे मुझे क्या ऐतराज़ होगा लेकिन कम से कम एक खबर मौसम के इस 'मारक' पक्ष भी तो बनती है पत्रकारिता के पाठ तो यही कहते है लेकिन यह पक्ष टीआरपी का नही है यह पक्ष व्यूवर चॉइस का नही है इसलिए हाशिए पर है खैर...!
गेंहू की कटाई का समय है फसल पकी खडी है कुछ ने कटाई भी की है लेकिन दो दिन की बारिश ने उसको खेत में ही तर कर दिया अब गेहूं का वजन भी कम होगा और गुणवत्ता भी प्रभावित होगी। चीनी मिल बंद होने वाली है आपको शायद ही यकीन हो अभी तक किसानों को 15 जनवरी तक गन्ना भुगतान मिला है देश के गरीब किसान की लगभग चार महीने की बिना ब्याज की उधारी है चीनी मिल मालिको पर बकाया है जिनके सीइओ मर्सीडिज़ में चलते है और बच्चे विदेशों में पढ़ते है। किसान बचा हुआ गन्ना जल्दी मिल मालिक को देकर मुक्त होने की चाह में है ताकि गेहूं काट सके और मिल लगभग दुत्कारती हुई गन्ना लेती है आज की तारीख में जो गन्ना जा रहा है उसका भुगतान नवम्बर पहले किसी हालत में नही होगा जैसाकि गत पेराई सत्र का इतिहास कहता है। लगभग एक महीना गाँव में रहते हुए हो गया है अपने अनुभवों के आधार पर यही कह सकता हूँ कि किसान को कोई सम्मानजनक ढंग से ट्रीट नही करता है चाहे वह मिल हो, सहकारी समिति हो,तहसील हो या फिर बैंक हो। बैंक से याद आया कि गन्ना भुगतान देते समय बैंक मैनेजर ऐसे तानाशाह की माफिक बात करता है जैसे खुद की जेब से पैसा बाँट रहा हो कई कई दिन मिल से पैसा सहकारी गन्ना समिति में अटका रहता है फिर बैंक तीन चार दिन खातों को अपडेट करने के नाम पर लटकाता है कुल मिलाकर हालात काफी खराब है।
चारो तरफ ढोल बज रहे है चलो मै भी मान लेता हूँ कि अच्छे दिन आने वाले है ! गाँव देहात का आदमी आखिर मानकर ही जीवन बिता देता है यह आस ही उसे कभी निराश नही होने देती कि एक दिन उसका भी वक्त बदलेगा।

खेती बाड़ी देहात की रिपोर्ट...

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