Wednesday, October 6, 2021

रुलाई

 

उसकी बातों को सोचते हुए रुलाई का फूट पड़ना महज एक घटना नहीं थी. दरअसल ये कई सालों से एक जगह पर तह करके की गयी शिकायतों और खुद की गलतियों की मिली जुली एक तात्कालिक प्रतिक्रिया जरुर समझी जा सकती थी. भावुक होना अच्छी बात थी मगर भावुकता का कोई बुद्धमार्ग नहीं था.

उससे अलग होते समय जो पीछे छूट गया था उसे सिलसिलेवार पढ़ पाना मुश्किल काम था. उसे बस देखा जा सकता था जैसे हुई वो महसूस होता तो आँखें खुद ब खुद बहने लगती थी.

उसकी बातों से एक बंदनवार बनाई जा सकती थी मगर उन बातों ने आखिरकार एक गुबार की शक्ल ले ली थी. ऐसा क्यों होता है यह जानने से बेहतर था कि यह जानना कि ये सब कैसे घटित हुआ. पुरुषों के लिए रोना एक अपशकुन की तरह रहा है वे रोते समय भी रोने की बाद की बातों को सोचकर शर्मिंदगी से भरे रहते हैं.

उसकी स्मृतियां न हँसा सकती हैं और न रुला मगर उसकी स्मृतियाँ हाथ पकड़कर वहां जरुर ले जा सकती है जहां रोने और हँसने के बीच की जगह पर दिल अकेला भटकता रहता है. किसी का साथ होना हमेशा साथी नहीं बनाता है मगर किसी का साथ होना इस बात की आश्वस्ति पालने की छूट जरुर देता है कि हम खोएंगे नहीं.

वो रुलाई दरअसल खुद के खो जाने से फूटी थी. अब इसके बाद कोई उसे यह न बता सकेगा कि आसमान का रंग नीला नहीं है और पानी का रंग वही दिखता है जो हमारी आँखों का होता है. खो जाने से भी बढ़कर दुःख इस बात का था कि हमनें उसे उस बात के लिए ही खो दिया था जिस बात के कारण कभी वो हासिल हुई थी.

सोचता हुआ और रोता हुआ मनुष्य एक मामलें में एक जैसे होते हैं दोनों ही उस बात के लिए परेशान होते हैं जिसका कोई ज्ञात हल नहीं होता है.

वो आगे बढ़ रहा था मगर पीछे जो छूट रहा था वो पीठ से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था. आगे बढ़ते हुए यह जाना कि गति खुद में एक भ्रम हैं बाजदफा हम आगे चलते दिखते जरुर हैं मगर हम वास्तव में अतीत की यात्रा पर होते हैं.

किसी को याद करके रोना अच्छी बात नहीं है मगर यह नहीं कहा जा सकता है कि रोना ही अच्छी बात नहीं है. रोना दरअसल कोई बात नहीं है यह हँसने का विपर्य भी नहीं है. अचानक से फूट पड़ना किसी अज्ञात ग्लेशियर के छिटकने के जैसा है लगभग जो न जाने कौन से तापमान के बढ़ने से एकदिन अपने घर से निकाला ले लेता है.

किसी से प्रेम करना उसके साथ हँसना मगर एकांत में कभी मत रोना. ऐसी रुलाई जब अचानक से थमती है तो हम खुद को दुनिया की सबसे निर्जन जगह पर खड़ा पाते हैं. शायद इसी कारण कहा जाता है कामनाएं मनुष्य को एकदिन अकेला कर देती हैं.

 

© डॉ. अजित

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