Wednesday, July 26, 2017

चाहत

अच्छा एक बात बताओं
चाहत आदमी को कमजोर बनाती है क्या?
प्राय: ! मैंने जवाब दिया
यह एक कूटनीतिक उत्तर है
मैं विस्तार से इस पर सुनना चाहती हूँ
क्या तुम किसी को चाहती  हो? मैंने पूछा
‘किसी को’ एक आग्रह है इसलिए इसका स्पष्ट जवाब नही है मेरे पास !
फिर भी समझ लो मैं चाहत में हूँ 
मेरा इतना होना महत्वपूर्ण है, वो इतना कहकर चुप हो गई
मैंने कहा
‘चाहत एक महीन बुनावट है एक किस्म का सीमांकन जिसमें आवाजाही के लिए हम एक वक्त नही चुन सकते है.जरूरी नही चाहत किसी अभाव से उपजी हो यह एक विस्तार का भी हिस्सा हो सकती है. जहां तक चाहत आदमी को कमजोर करने का प्रश्न है मैं कमजोरी और मजबूती को मनुष्य के संदर्भ में समझ नही पाता हूँ. मनुष्य को उसकी कामनाएँ लचीला बनाती है यह दीगर बात है कि आप अपनी लोच पर झूला झूलते हुए मन के सबसे उदास गीत पूरे उत्साह से गा सकते है या फिर इसी लोच पर सवार होकर आप अपने एकांत के सबसे उपेक्षित कोने में विश्राम की मुद्रा में भी जा सकते हैं. दोनों ही स्थितियां मुझे कमजोर नही लगती है.’

हम्म ! समझ गई तुम चाहत को शायद नही समझते हो !
शायद इसलिए कहा मुझे उम्मीद है एक दिन जरुर समझ लोगे
हालांकि उम्मीद अपने आप में एक आग्रह है
मगर मैं चाहती हूँ तुम चाहत को किसी आग्रह के कारण मत समझो
चाहत को बुद्धि के द्वारा भी परिभाषित न करों
मैं तुम्हें चाहत में मौन देखना चाहती हूँ.
...मेरे मौन होने से क्या मेरे चाहत में होने की पुष्टि हो सकगी? मैंने पूछा
नही तुम्हारे मौन होने से मेरा यह भ्रम दूर होगा कि
चाहत आदमी को कमजोर बनाती है

तुम्हें कैसे पता कि मेरा मौन होना वास्तविक मौन होना होगा
हो सकता है यह मेरा कुशल अभिनय हो!
चाहत में व्यक्ति अभिनय करना भूल जाता है
इतना मुझे पता है, यह कहकर वो हंस पड़ी.

© डॉ. अजित

#संवाद


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