Saturday, July 1, 2017

हफ्तेबाजी

इतवार:

दिन लगभग सवा घण्टे देर से निकला। बिस्तर के पास कुछ सपनें है जो उसके पास छाया की तलाश में ठहर गए है। वो लेटा हुआ प्रार्थना करता कि लाइट न जलाई जाए। जीवन प्रकाश का दास है वो ऊर्जा और अंधेरे को विपर्य समझता है। खिड़की से कुछ आवाजें छनकर आ रही है मगर उन्हें अपने भिक्षापात्र में लेने वाला कोई नही है इसलिए वो अकेली जंगल की तरफ लौट गई है जाते-जाते उन आवाजों ने मेरी एक उल्टी चप्पल सीधी की है। कमरे की गुमशुदा हवा ने ये शुभता का शगुन देखा और बादलों को जा सुनाया। हवा की करुणा देखकर बादल रोना पड़े और बारिश हो गई है। बारिश के मौन ने मुझे जगाया मुझे लगा कोई सिरहाने बैठा मेरे माथे पर हाथ फेर रहा है। इतवार एक न पढ़ा गया दस्तावेज़ है।

सोमवार:

सुबह आज अनुशासन की दास है। जिन्हें कहीं पहुंचना है वे सुबह अनमने होकर उठे और फिर एक नियत गति के शिकार होकर सुसज्जित हो अपने गंतव्य की तरफ निकल गए है। उनकी छाया घरों के एकांत से उकताकर मेरे नजदीक बैठ गई है। उनका आग्रह है कि मैं कर्मयोग के खंडन में कुछ बोलूं मगर मैं चुपचाप एक करवट लेटा हुआ उन्हें देख रहा हूँ उन्हें मेरी चुप्पी खली और उन्होंने मुझे एक पारंपरिक मनुष्य घोषित कर दिया। मैं उनसे कुछ कहने का साहस जुटाता हूँ तब तक उनकी सुनने का कौतूहल चूक जाता है। सोमवार अपने सबसे करीबी दोस्त को हड़बड़ी में लिखा गया एक खत है।

मंगलवार:
दिन आज थोड़ी देर से निकला है। दरअसल रात का एक कंगन मेरे सिरहाने कहीं खो गया था वो उसे व्याकुल हो तलाश रही थी इसलिए वो देर से मेरे पास से गई। मुझे सच मे नही पता था उसका कंगन कहां गुम हुआ है और अगर पता भी होता तो भी नही बताता ये बात सवेरा जानता है इसलिए उसने मुझे कभी भरोसेमंद नही समझा और अक्सर सुनाई वे सब खबरें जो मेरा मनुष्यता में भरोसा थोड़ा कमजोर करती है। मंगलवार जीवन के नियोजन का एक उलझा हुआ अनुवाद है।

बुधवार:
मध्यांतर पर खड़ा है मैं खोए हुए लोगो की एक सूची बनाता हूँ। जो बेहद करीब थे मगर कहीं खो गए उनका नाम मैं भूल गया हूँ मगर उनकी शक्लें और लहजें मुझे ठीक ठीक याद है इसलिए आज के दिन ने मुझे लेखक से चित्रकार बना दिया है। अब सूची के स्थान पर मेरे पास कुछ चित्र है इन चित्रों की शक्लें आपस मे इतनी मिलती है कि कोई मुझे एक पागल प्रेमी आराम से समझ सकता है जबकि ये सब अलग-अलग लोग है। ये वो लोग है जिन्हें मैं सहेज नही पाया इसलिए अब इनके चित्रों के विज्ञापन का भी क्या करूँगा इसलिए मैनें सूची के चित्र एक एक करके हवा में उड़ा दिए। आज हवा नदारद है वो छुट्टी पर है इसलिए आधे चित्र मेरी पीठ तो आधे चित्र मेरी छाती से चिपकते हुए नीचे गिर रहे है। बुधवार नीचे गिरती हुई चीजों को देखने का दिन है।

बृहस्पतिवार:
एक खगोलीय पिंड की भांति मुझे अपने उपग्रहों के प्रेम है। मगर यह प्रेम नितांत ही यांत्रिक और बुद्धिवादी है इसलिए मेरे उपग्रह मेरा चक्कर लगाते हुए बेहद उदासीन प्रतीत होते है। उनके पास विकल्प है मगर मेरी बाह्य आकृति उनको बांधें हुए है जबकि मेरे अंदर का कोलाहल सुनने के लिए अपनी नियत कक्षा में चक्कर काट रहे है। उनके पास केवल अनुमान है क्योंकि प्रमाण मैनें अपने हृदय के संतृप्त ज्वालामुखी में जलाकर नष्ट कर दिए है। बृहस्पतिवार मानवीय कामनाओं को बुद्धि के द्वारा सिद्ध करने का एक गणितीय दिन है।

शुक्रवार:
सुबह जब मैं जगा मेरी गर्दन के नीचे कुछ कृतज्ञताएँ झूला डाल झूल रही थी उनके पैर मेरी पीठ के ठीक मध्य लगते थे।मुझे थोड़ी गुदगुदी हुई और आंख खुल गई। थोड़ी देर विस्मय से मैं खुद की त्वचा को देखता हूँ तुम्हारी देह की प्रतिलिपि वहां कुछ छुट्टे पैसे लेने आई है। मैं अपनी जेब की तलाशी लेता हूँ तो वहां तुम्हारा एक लंबा बाल पड़ा है वो मेरा हाथ पकड़ लेता है। मैं बाल को मुद्रा समझ सारी दुनिया मे भटक रहा हूँ इस बाल के बदले मुझे कोई न एक बूंद शराब की देता है और न एक गिलास पानी ही कोई पिलाता है। मैं इस बाल को दुर्लभ समझ किताब के मध्य रखता हूँ और उस किताब को कहीं रखकर भूल जाता हूँ। शुक्रवार दुलर्भ चीजों को कहीं रखकर भूलनें का दिन है।

शनिवार:
न्याय की दृष्टि यह कहती है कायदे से अब तक मुझे मर जाना चाहिए था। मगर मैं जीवित हूँ और जीवन के पक्ष में हजार प्रमाण प्रस्तुत कर सकता हूँ। आज मैनें रास्तों को शतरंज खेलते देखा हालांकि मुझे यह शह और मात का खेल बिल्कुल नही आता मगर इस खेल को रुचि से देखना यह बताता है कि मेरे हिस्सें भी कुछ शह और कुछ मात आई है। जिंदा रहना अपनी असफलताओं को मात देना नही शह देना है जिसकी कीमत हमें तब चुकानी पड़ती है जब खेल खत्म हो जाता है।
शनिवार पीछे मुड़कर देखने का नही एक जगह खड़े होकर होशपूर्वक देखनें का दिन है।

'हफ्तेबाजी'

© डॉ. अजित

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