Monday, May 15, 2017

पहाड़ डायरी-1

आज सुबह की चाय पीने के बाद मैं टहलने के लिए जंगल की तरफ चला आया. पिछले दो दिन से यहाँ हूँ. पहले दिन कमरे में अकेला पड़ा रहा. किसी नई जगह जाकर मुझे एकदिन उस जगह को अपनाने में लगते है. आज सुबह जब मेरी आँख खुली हल्की बारिश हो रही थी. बारिश की आवाज़ मुझे अच्छी लग रही है मैंने अपनी घड़ी देखी और थोड़ी देर तक एक करवट लेटा रहा.
अभी जिस जगह मैं हूँ वो पहाड़ की चोटी के नजदीक है. थोड़ी सुनसान जगह है मगर मुझे रास्तो की गुमरही से लेकर मंजिलों का सुनसानपन पसंद है. मैं यहाँ किस लिए हूँ ये तो नही बता सकता हूँ मगर मैं यहाँ होश में पहली बार हूँ. ये बात ठीक से जानता हूँ.
आते समय मेरे पास थोड़े से रूपये थे और मन में कुछ शंकाएं भी फिर मैंने दोनों को अलग अलग जेब में डाल दिया और यहाँ चला आया हूँ .अब दोनों की आईस-पाईस खेलते हुए मेरे पास से गुमशुदा हो गये है.
जिस जगह मैं फिलहाल हूँ  यहाँ मोबाइल के सिग्नल कमजोर है मुझे इससे कोई दिक्कत नही है मैंने एक मैसेज भेजकर बस इतना भर चैक किया कि एसएमएस जा रहे है या नही जैसे ही मैसेज डिलीवर्ड हुआ मैंने फोन को बंद करके जेब में रख लिया.
जिस पहाड़ी गेस्ट हाउस पर मैं रुका हुआ हूँ वहां केवल दो सुईट है और एक केयरटेकर है वही खाने का व्यवस्था भी करता है. मुझे देखकर वो ज्यादा खुश नही हुआ है क्योंकि मैं किसी की सिफारिश से यहाँ रुका हुआ हूँ उसने आते ही  मुझसे पूछा कि क्या मैं कोई अधिकारी हूँ? मैंने जब उसको कहा नही मैं एक आवारा हूँ. उसे मेरे जवाब में सच्चाई नही चालाकी लगी.
आज शाम सोच रहा हूँ कि उसे थोड़ी शराब ऑफर करूं ऐसा करने से वो मेरा सम्मान नही करेगा बस इससे इतना भर होगा अब वो मेरा अपमान नही करेगा और चाय वक्त पर पूछ लेगा. हालांकि मेरे पास ज्यादा शराब नही है मगर उससे कम मेरे पास पैसे है इसलिए मुझे वस्तु-विनिमय पर यकीन करना होगा.
आज की सुबह में धूप शामिल नही है. ठंडी हवा चल रही है. बादल पहाड़ के कान पर बैठकर उसका चश्मा ठीक कर रहे है ताकि वो धरती को साफ-साफ़ देख सके. मैं एक पत्थर पर बैठकर सुस्ता रहा हूँ यहाँ से से वैली दिख रही है. वैली में  दिखते मकान शहर जैसा नक्शा बनाते है. ये देखकर मेरी ऊब बढ़ जाती है मैं कंक्रीट के जंगल से बचना चाहता हूँ  इसलिए सुस्ताना छोड़कर आगे की तरफ बढ़ जाता हूँ.
(जारी....)

#मेरी_पहाड़_डायरी  




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