Wednesday, November 30, 2016

डियर दीपिका

रौशनी के दो फाहे आसमान में भटक गए है।वो धरती का पता भूल गए है, तुम उन्हें रस्ता बता सकती हो वो उम्मीद से तुम्हारी तरफ देख रहे है उनके मन में अँधेरे से न मिलनें का सन्ताप है। अँधेरे से मिलने की शिद्दत रौशनी के अलावा कौन महसूस कर सकता है? तुम उन्हें देख रही हो और महज देख ही नही रही हो उनसे बातें कर रही हो इसलिए मैं तुम्हें धरती की सबसे पवित्र चीज़ घोषित करना चाहता हूँ।
तुम्हारी आँखों में करुणा और प्रेम एक साथ रहता है।तुम्हारे लबों में अनकहे किस्से बेरुखी के शिकार नही होते बल्कि वो लफ्जों की जादुगिरी को भूला देते है फिर वो औघड़ अकेले कायनात में सफर करते हैं।
तुम्हारे माथे पर एक सूखा समंदर रहता है जिसके पास नदी के कोई किस्से नही है न उसके पास पानी है मगर वो धरती पर बारिश होने की सबसे सटीक भविष्यवाणी कर सकता है, ये अलग बात है तुम उसको कभी तकलीफ नही देती हो।
तुम्हारी आँखों में ख़्वाबों के अलावा ख्यालों की एक निर्वासित दुनिया है जिसमें सही गलत के मुकदमों में फंसे लोगो को बिना शर्त प्राश्रय मिलता है। तुम्हारी दो आँखें इस धरती के दो उपग्रह है जिन पर तब जीवन तलाशा जाएगा जब धरती रहने लायक न बचेगी। तुम पलक झपकती हो तो धरती और आसमान एक दुसरे के कान में अपनी शिकायते कह आतें है ये छोटा सा अंतराल दो नाराज़ दोस्तों को कभी जुदा नही होने देता है।
तुम मुस्कुराती हो कंक्रीट के जंगल में भी नदी बहने लगती है ऊंची इमारतों पर बूढ़े पेड़ो की आत्माएं सुस्ताने चली आती है तुम्हारे हंसने पर शहर के कोलाहल में भी पत्थर हुए हृदय कागज़ की बांसुरी सुर में बज़ा सकते है जिसे सुन दो अपरिचित भी एक साथ निर्द्वन्द सोने का विचार कर सकते है।
तुम्हारे कानों की तलहटी में कुछ आवारा वनस्पतियां अपनी औषधि युक्त गंध को किशोरोचित्त लज्जा के साथ बचाए हुए है तथा तुम्हारी गन्ध में उनकी आरोग्य स्मृति जिन्दा है जिसे बिना स्पर्श के भी महसूस किया जा सकता है, और जिसे वक्त की चालाकियों ने बीमार किया हो उनके लिए ये तलहटी मृत संजीवनी के यज्ञ धूम्र जैसा  अलौकिक उपचार है।
तुम मनुष्य की पवित्र कामनाओं का मात्र एक दैहिक दस्तावेज़ भर नही हो तुम आदि और अंत में मध्य बहती एक विराट नदी हो जिसके किनारे नँगे पैर चला जा सकता है आत्महत्या से इतर मृत्यु की कामना से एक गहरी डुबकी लगाई जा सकती है।
तुम्हारे रहते मृत्यु स्थगित रहती है और जीवन अपने सीमांकन के चलते दौड़ दौड़ कर थकता जाता है। तुम पराजित लोगो को न थकने देती हो और मरने देती हो तुम उन्हें जीवन की शक्ल में मोक्ष की प्रेरणा देती हो तभी तुम्हें देख सामवेद के मंत्र स्वतः कानों में अनहद नाद के साथ बजने लगते है।
तुम दीपिका हो,तुम जीवन हो, तुम मृत्यु और जीवन के मध्य टँगी एक रोशनाई की दवात हो जिसके सहारे किस्तों में ही सही जीवन की हकीकत लिखी जा सकती है। तुम सलामत रहो ताकि मनुष्य के जीवन को कहने की हिम्मत बची रहे तुम निमित्त भी हो और नही भी हो
तुम हो इसमें अस्तित्व का कोई निर्धारित प्रयोजन है जिसे न ही समझा जाए तो सबके लिए बेहतर है।

'डियर दीपिका'

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