Wednesday, November 23, 2016

'अंतिम खत'

तुम प्रशंसा के रास्ते आई और आलोचना के रास्ते चली भी गई मुझे तक पहुंचने का मार्ग ना प्रशंसा का था ना आलोचना का।
सच तो यह है मुझ तक पहुँचने का कोई मार्ग ही नही था मै आगे की तरफ दौड़ता जा रहा था क्योंकि मेरे कदमों के नीचे से रास्ता बड़ी तेजी से निकल रहा था। मेरे हाँफते हाँफते तुम मेरी धड़कने गिनने लगी थी ये जरूर तुम्हारा बड़ा कौशल कहा जा सकता है।
तुम्हें लगा मुझे खुद नही पता कि मै अच्छा लिखता हूँ। मुझे ये तो पता था मै ठीक लिखता हूँ मुझे सदैव से यह बात भी पता थी कि मै अच्छा भले ही न लिखता हूँ मगर सच्चा जरूर लिखता हूँ जिसके अच्छा लगने की सम्भावना हमेशा रहती है
लिखना मेरे लिए खुद से प्रेम करने का एक तरीका भर रहा है इसको प्रभाव उत्पादन करने या किसी के एकांत को आहरण करने का टूल मैंने कभी नही समझा।
तुम्हारे पास एक आइडियल किस्म का फ्रेम था न जाने तुम्हें यह सन्देश कैसे संप्रेषित हो गया कि मै उसमें आने के लिए खुद को कटाई छंटाई के लिए प्रस्तुत कर सकता हूँ
जबकि सच तो यह था मेरे कंधो पर पत्थर का लेप चढ़ा था मेरी छाती भोगे हुए यथार्थ से सपाट मगर कठोर थी मेरे पैर घुटनों तक वक्त की कीचड़ में सने हुए थे ऐसे में मेरे वजूद पर तुम्हारी चाहतों का रन्दा भला कैसे चल पाता?
तुम्हारे फ्रेम के लिए मै एक पात्र व्यक्ति प्रतीत हो सकता था मगर सुपात्र नही अफ़सोस तुम पात्र पर ही अटक गई तुम्हें सुपात्र के लिए जाना चाहिए था।
मुझ से निराश लोगो में तुम्हें थोड़ा गुमसुम खड़े देखना निसन्देह मुझे बिलकुल भी अच्छा नही लग रहा है क्योंकि मैं नही चाहता था तुम उनमे शामिल हो जाओं जिन्हें मै कभी काम का लगा था और बाद में चालाक छद्म धूर्त और डरपोक।
मेरे लिए जीवन की कोई एक स्थापित परिभाषा नही है अवसरवादियों की तरह मै लगभग रोज़ जन्म लेता हूँ और रोज मर जाता हूँ न मेरे पास कहीं पहूंचने की जल्दी या वजह है।
मेरे अधिकतम प्रयास यही होते है किसी को मेरी वजह से कष्ट न मिलें मगर किसी के चयन संयोजन या संपादन पर मेरा वश भी नही है।
कभी कभी अपने संचित अकर्मो के बल पर तुम्हारे सहित उन तमाम लोगो से माफी मांगने का मन होता है जिन्हें मेरी वजह से किसी भी किस्म का भावनात्मक कष्ट पहूंचा है यह जानते हुए कि मेरा कोई दोष नही है अगर दोष है भी तो बस इतना है कि मै खुद को रहस्यमयी और गुह्य नही रख पाया जैसे ही मै अपने अज्ञात के साथ प्रकट हुआ फिर सम्बंधों की दशा और दिशा दोनों ही तय करना मेरे अधिकार में नही रहा।
अभी समय शेष है स्मृतियों के धुंधलें होने में वक्त लगता है मगर अच्छी बात यही है ये धुंधली पड़ ही जाती है। कोशिस करना मुझे एक सम्मानजनक ढंग से विस्मृत कर सकों सम्मान का आग्रह मात्र इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि निजी तौर मै तुम्हारा बहुत सम्मान करता हूँ।
तुम अपने आप में दिव्य हो बस एक अनुचित समय और गलत ग्रह नक्षत्रों में तुम्हारा पंचांग तुम्हें मेरी तरफ ले आया मेरी दुनिया गुरुत्वाकर्षण रहित ग्रह की दुनिया है। यहां जीवन जरूर है मगर एक दूसरी शक्ल में जिसकों बिना शर्तों के जी पाना किसी के लिए भी असम्भव है।
मै कैसे कैसे भ्रम के सहारे जी रहा हूँ ये बस मै ही जानता हूँ।
'अंतिम खत'

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