Wednesday, August 3, 2016

आईना

वो एक लम्हा था
भीगा हुआ दरकता हुआ। नदी के नजदीक उसके गीत सुनता दरख़्त अचानक से उसी के वेग में जड़ से उखड़ गया था। ये वक्त सियासत थी या किस्मत की बगावत तय करना थोड़ा मुश्किल था।
आसमान के कुछ कोण उड़न झूले में सवार हो गए थे जहां से अपना ग्रह नही दिख रहा था इसलिए ये तय करना मुश्किल था कहाँ डर कर इसे रुकवाना है या फिर चलते हुए से कूद पड़ना है चिल्लाते हुए।ये बात कुछ कुछ आत्महत्या जैसी लग सकती थी।
उम्मीद के दायरों में उसके लिए रोना मना था इसलिए वो इकट्ठा करता गया दर्द के छोटे छोटे कर्जे।उसकी आँखों में कुछ कबीले बगावत पर उतर गए थे ऐसे में बड़ा मुश्किल था ये पता करना कि दुश्मन अंदर का था या बाहर का।
दिल एक फकीर है और मुहब्बत के पास मांगने के अलावा कोई दूसरा काम नही है वो जिद पे आकर मांगती है उसनें एकदिन जान के साथ जीने का गुरुर ही मांग लिया उसके बाद दिल के तमाशे में जेहन सबसे बड़ा किरदार बनकर उभरा।
माथे की लकीरों में शिकन नही थी बस कुछ शिकवे रफू हो गए थे उसके बाद जख्मों की तासीर जुदा हो गई वो दिखते बेहद शुष्क थे मगर वो अंदर से हरे थे उन पर वफ़ा के पट्टी भी शिफ़ा अता करने की कुव्वत नही रखती थी।
आंसूओं को बेरंग कहे जाने की रवायत रही है मगर उन आंसूओं का जो रंग था उससे कोई इंद्रधनुष नही बन सकता था इसलिए उसे आवारा कह कर छोड़ दिया गया। हां वो आवारा आंसू थे मगर कलेजा चाक करके जिसकी याद में निकलें थे उसके पास वफ़ा की एक फेहरिस्त थी कच्ची पैंसिल से लिखे कुछ जवाब थे इसलिए उन्हें पढ़कर सबसे पहले अपनी कलम याद आई।
उसकी कलम ही उसके कत्ल का हथियार थी जिसे मौक़ा ए वारदात से बरामद किया गया था।
इस तरह एक खूबसूरत ख्वाब ख्याल अपनी मासूमियत के साथ तन्हा बर्बाद हुआ तमाम ऐतिहातन हिफाजतों के बाद।
इश्क़ के बिछोड़े आंसूओं का सफर तय करके आए थे इसलिए उन पर वक्त और खुशफ़हमियों की गर्द चढ़ी थी
आईना उस देश में केवल महबूब के पास था इसलिए वो सबसे पहले खुद की ही शक्ल भूल गया।

'भूली बिसरी बातें'

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