Tuesday, March 15, 2016

खत

प्यारी माँ,
दिन बीत रहें हैं साथ में मैं भी बीत रही हूँ धीरे धीरे। आज तुम्हें तुम कहकर ही सम्बोधित करूंगी क्योंकि अब मैंने प्यार को उस आदर में तब्दील कर दिया है जिसको बता पाना मुश्किल है।कहनें को हमारी दो अलग दुनिया थी तुम बीत चुकी थी और मैं अलग अलग भूमिकाओं में खुद को जांच परख रही थी। तुम मेरे लिए कभी आदर्श नही रही मगर तुम से मेरा एक अजीब सा रिश्ता रहा है मैंने भरसक कोशिश की तुम्हारी तरह मजबूर न बनूं मगर कुछ कुछ हिस्सों में मैं तुमसे अधिक मजबूर थी इसलिए हमेशा बातों को अदल बदल कर जीती रही। दरअसल हम दोनों ने एकदुसरे को तब जाना जब तुम अपना अस्तित्व को भूल जीने की आदी हो गई थी और मैं अस्तित्व के सवालों में उलझी हुई थी। तुम्हारे साथ ने मुझे ये बताया कि जीवन तमाम असमानताओं के बाद भी जीने के लायक बच ही जाता है। बहुत से ऐसे सवाल थे जिनके जवाब तुमसे चाहिए थे मगर बाद में मैंने शिद्दत से महसूस किया वो सारे सवाल बेज़ा थे तुमसें उनके जवाब पूछना तुम्हारे प्रति अनादर ही होता।
हम और तुम एक दुसरे से बेहद अमूर्त ढंग से जुड़े थे शब्दों से इतर अहसासों की जमानत पर हम एक दुसरे की दुनिया में रिहा थें। आज भी मेरे रक्त की बूंदों में धड़कनों की ध्वनि में तुम्हारे होने के प्रमाणिक मंत्र चुपचाप यात्रा करते है।
भले ही मेरा होना तुम्हारे लिए कोई ख़ास अर्थ न रखता हो और मैं खुद तुमसे कनेक्ट के मामलें में कमजोर रही हूँ मगर बावजूद इसके मेरा अस्तित्व तुम्हारे ही अस्तित्व का एक विस्तार था। माया और मोह से इतर तुम्हारे साथ मैं जीवन को हिस्सों और किस्सों में जी पायी इसके लिए मैं अंतर्मन की गहराई से बेहद कृतज्ञ हूँ।
ऐसा कई दफा हुआ दुनियादारी की खीझ के चलतें मैं तुम पर बरस पड़ी मगर बाद में महीनों अपराधबोध ने मेरा पीछा किया मेरी नींद के कुछ गहरे पल विलम्बित भी इस ग्लानि ने किए ये बात आज तक तुम्हें न बता पाई मगर आज बता रही हूँ।
मेरी यात्रा की निमित्त तुम बनी और तुम्हारी यात्रा अलग अलग केन्द्रो में विभाजित थी फिर भी मैंने तुम्हें अपने आसपास रखा बाह्य तौर पर भले मेरे कुछ स्वार्थ हो सकतें है मगर आन्तरिक स्तर पर वो सब कुछ छोटी छोटी आशाएं थी जिनसे मैं तुम्हें बांधकर रखना चाहती थी।
माँ, तुम दरअसल इतनी सजीव और जीवन्त हो कि तुम्हें कल्पना में किसी अन्य स्थान पर रख पाना मेरे सामर्थ्य से परे की बात है इसलिए हमेशा तुम मेरा यथार्थ बनकर मेरे जीवन में शामिल रही हो। हिम्मत रोशनी सम्बल ये सब बाहर से भी मिल जातें है तुमसे मुझे हमेशा पवित्र ध्वनियों वाली आश्वस्ति मिली है जिसके सहारे मेरा अस्तित्व प्रखर हुआ है।
जानती हूँ तुम्हारा प्रेम हमेशा अमूर्त रहा है और तुमनें हमेशा ये सोचा मैं अपना ध्यान खुद रख सकती हूँ कई बार मुझे ऐसा भी लगा कि तुम स्नेह के मामलें में निष्पक्ष नही हो मगर फिर भी एक मामलें में जरूर निष्पक्ष थी तुम्हें मेरी फ़िक्र हमेशा एक समान रही मेरी उदासी तुम्हारे लिए असहनीय थी भले ही कारण तुमनें न पूछे हो मगर तुम्हें पता सब होता था।
बिना ज्यादा पढ़े हुए भी तुम जानती थी छोटे छोटे सुख को उस दुःख से बचाकर रखना जो एक स्त्री के जीवन में जन्म से तय हो जातें है। तुम्हारी चुन्नी के कोने में बंधी होती थी जीवन की सबसे बड़ी पूँजी जो तुमनें मुझे हमेशा दी बिन मांगें न जानें कहाँ से माएं जान जाती है गाँठ में सुख को बान्धना और ठीक उस वक्त खोलना जब उम्मीद बेहद बोझिल हो।
मैं खुद कैसी माँ साबित हूँगी ये भविष्य के गर्भ में छिपा है मगर कुछ अर्थों में तुमसे अच्छी माँ होना मेरे लिए इस जन्म में सम्भव न होगा जिसकी वजह यह नही कि मुझमे सामर्थ्य नही है इसकी वजह है क्योंकि मैं तुम नही हूँ।
मुझे तुमसें कुछ शिकायतें है मगर आज एक न कहूँगी बल्कि मैं अपनी उन गलतियों को आज याद करना चाहती हूँ जिनकी माफी तुमसें न मांग सकी और अच्छा हुआ नही मांग सकी इन्ही गलतियों के चलते मैं तुम्हारे उतना नजदीक जा सकी जितना कभी पहले नही गई थी। माफ़ी मांगने से शिकायत करने से मन का बोझ हलका होता मगर तुम्हारा मेरा रिश्ता कुछ इस किस्म का रहा है कि मेरे बोझ में हमेशा तुम्हारा बोझ शामिल रहेगा इसलिए तुम्हें खुद से अलग करके मुक्त नही होना चाहती बल्कि तुम्हारे साथ मुक्त होना चाहती हूँ।
शायद दोबारा जिंदगी में ऐसी मोहलत न मिलें इसलिए आज कहना चाहती हूँ तुम मेरे जीवन की वो प्रस्तावना हो जिसका कोई उपसंहार नही है मैं चाहती हूँ तुम मेरे अंदर किसी आवारा नदी सी बहती रहो बिना किसी कोलाहल के जब तक मेरी सांसे चल रही है तुम चलती रहो और देखो बतौर माँ मैं कितनी यात्रा तय कर पाती हूँ जानती हूँ तुम्हें मेरी कोई भौतिक उपलब्धि उतनी खुशी नही देगी जितनी खुशी ये बात देगी कि मैं तुमसे अलग किस्म की माँ बन गई हूँ।
शेष कभी नही कहूँगी यही मेरा तुमसें पहला और आख़िरी खत है क्योंकि बिन कहे समझना तुम्हें खूब आता है।

तुम्हारी बेटी (जो अब थोड़ी बड़ी हो गई है)

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