Thursday, March 10, 2016

बातें

तुमनें उस दिन कहा कि 'तुम्हारे कान बहुत सुंदर है'
पहली बार किसी ने मेरे कान की तारीफ की अमूमन बढ़िया सौंदर्यबोध में भी कान पर कोई ध्यान नही देता है सुंदरता को देखनें के मानक दुसरे होतें हैं। तुमनें मेरे कान के निचले नरम हिस्से को ठीक वैसे छुआ जैसे कोई मन्दिर की घण्टी को छूता है अपनी तर्जनी से तुमनें उसे थोड़ा हिलाकर देखा।
दरअसल,कान की ख़ूबसूरती के जरिए तुम मेरी सुनने की क्षमता की तारीफ़ करना चाह रही थी कि तुमको मैं ऐसे ही बिना किसी तर्क वितर्क कई बार सुनता रहा हूँ लम्बे समय तक। जब मैंने तुम्हें ये बात बताई तो तुम हंस पड़ी तुम्हें लगा कि आत्ममुग्धता के लिए मैं सामान्य सी बातों का भी दार्शनिककरण कर देता हूँ।
हंसते हंसते तुमनें कहा तुम्हारी नाक थोड़ी बड़ी है मैं बोलनें ही वाला था कि तुम कहने लगी अब इसका अर्थ ये मत निकाल लेना कि तुम्हारा अह्म बहुत बड़ा है।
मैंने कहा हाँ यही सोच रहा था इस पर तुम थोड़ा गंभीर हो गई और बोली जो मैं कहती हूँ तुम उसके निहितार्थ क्यों विकसित करते हो मैंने कहा पुरानी आदत है मेरी।
फिर तुमने कहा चलो एक खेल खेलतें है मैं एक टिप्पणी करूंगी और तुम उसके निहितार्थ बताना मैं उस वक्त उस खेल के लिए तैयार नही था मगर फिर भी मैंने हांमी भर दी।
मेरी हां के बाद तुमनें कहा नही खेल की कोई जरूरत नही है तुम बातों को डिकोड करना जानते हो ये पता है मुझे मगर हर बार तुम्हारा अनुमान सही हो ये जरूरी नही। अनुमान कई बार इस कदर गलत होते है कि हम उसके बाद सच तक बोलना छोड़ देते है।
मैं चाहती हूँ कि तुम कभी सच बोलना मत छोड़ो।
मैंने कहा अब तुम कान से दिमाग तक पहूंच गई हो अब ये मत कह देना मेरा दिमाग बहुत सुंदर है। इस पर तुम हंस पड़ी नही नही जानती हूँ तुम्हारा दिमाग नही तुम्हारा दिल तुम्हारे कान की तरह बहुत सुंदर है।
मैंने कहा कान की तरह? ये क्या तुलना हुई इस पर एक लम्बी सांस लेते हुए तुमनें कहा हां ! कान की तरह क्योंकि ये भी मेरी बातें सुनता बहुत हैं।
मेरे पास मुस्कराहट से बढ़िया कुछ नही था जो उस वक्त तुम्हें दे सकता था इसलिए वही दे दी उस वक्त जिसें तुम ले गई हो अपने साथ हमेशा के लिए।


'बातें है बातों का क्या'

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