Tuesday, December 29, 2015

उसकी आँखें

' उन आँखों में एक कातरता थी। करुणा और अवसाद का सम्मिश्रण बन आँखों सी तलहटी से बह रहा था। आँखों के कोण  उन अक्षांशों पर स्थापित हो गए थे जहां निकटता और दूरी को एक साथ देखा जा सकता था।
आँखों के जरिए एक जीना ठीक उसके दिल में उतरता था मगर दिल के दरवाजे पर सांकल चढ़ी थी। वो जब देखती तो कोई प्रश्न शेष न बचते उसकी आँखों का भूगोल निर्जनता के कई खोए मानचित्र लिए थे जिनकी शिनाख्त करने की हिम्मत बड़ी मुश्किल से जुटा पाता था।
वो नदी की तरह विकल थी मगर उसने अपने किनारों को तन्हा नही छोड़ा था उसके पास कुछ वजीफे थे जो उसनें स्पर्श की शक्ल में किनारों को दिए थे। उसकी आँखों में नदी के जलस्तर को नापने का पैमाना था वहां वेग की उथल पुथल उतनी साफ़ नही पढ़ी जा सकती थी मगर उसकी आँखों के जरिए कुछ अनुमान और गणनाएं अवश्य की जा सकती थी मसलन आंसूओं की आद्रता का स्तर क्या है वो सूखकर ग्लेशियर बनेंगे या फिर बहकर समाप्त हो जाएंगे हमेशा के लिए।
वो प्रकृति का अनहद नाद थी जिसकी ध्वनि आँखों के रास्ते सुनी जाती थी उसका काजल आवारा बदरी की टुकड़ियों का एक समूह था जो वक्त बेवक्त बरस जाया करता था इसी के जरिए आँखों की नमी चमक में तब्दील होती थी।
वो जब देखती तो शब्द दुबक जाते वाणी और स्वर अर्थ खो देते और आँखें भाषा का अधिकार पा लेती उसकी आँखों के महाकाव्य पढ़ने के लिए गर्दन नीची नही करनी पड़ती। उसे पढ़ते हुए जाना जाता शब्द का ब्रह्म हो जाना उसकी आँखों का अपना एक स्वतन्त्र शब्दकोश था जिसके पन्ने स्वतः पलक झपकनें के अंतराल पर पलटते जाते।
वो एक नदी थी वो एक महाकाव्य थी वो एक जीवन्त आख्यान थी और उसकी आँखें इल्म और अदब की दरगाह थी जहां कलन्दरो को पनाह मिलती थी उसकी निगाह में आतें ही खाकसार मुरीद और मुर्शिद एक साथ हो जाते थे।

No comments:

Post a Comment