Sunday, September 27, 2015

इतवारी खत

अकेला होना मेरे लिए इसलिए भी कोई त्रासदी नही है क्योंकि इसमें कुछ अंशों में तुम्हारी भी महती भूमिका है। जिस स्थिति में तुम परोक्ष रूप से शामिल हो वो मेरे लिए कभी त्रासद नही हो सकता है बल्कि मैं उसमें उत्सव तलाश लेता हूँ।
तुम्हारे अपने स्थापित मानकों में हिसाब से मेरा कद छोटा है वय की लकीर हमारें मध्य तुम सम्पूर्ण उत्साह के साथ खींच देती हो। प्रेम तो खैर बड़ी गहरी और व्यापक जिम्मेदारी है तुम सामान्य मैत्री की अर्हता में भी मुझे अनुत्तरीण पाती हो। बिना किसी प्रेम या मैत्री के तुम मुझ पर एक अधिकार समझती हो यह मेरे लिए थोड़ी द्वंदात्मक और थोड़ी विचित्र स्थिति है। तुम्हारी बातों से सीधे सीधे यह लगता है तुमनें मेरे बारें में कुछ अमूर्त किस्म का फ्रेंम तय किया हुआ है और उसमें मेरे वजूद को मनोकूलता से फिट करने का प्रयास करती रहती हो।
यदि मैं मुक्त यात्री की भाँति अपने अनुभव तुम से साँझा करूं तो तुम्हे यह मेरे अस्तित्व का सामान्य होना लगने जैसा प्रतीत होता है फिर तुम अपने चयन पर खीझती हुई एक हद तक उपदेशात्मक हो जाती है तुम्हारी खीझ में मुझे खारिज़ कर मेरा अन्य की भाँति सामान्य होना की धारणा को स्थापित करने का साफ़ दिखता भी है।
दरअसल, तुम अभी तय नही कर पाई हो कि मैं तुम्हारा क्या हूँ? यह अनिर्णय की अवस्था तुम्हें मेरी कक्षा के क्या तो बेहद नजदीक ले आता है या फिर बेहद दूर।
जानता हूँ तुम्हारा स्पष्ट बोलना निसन्देह कड़वा बोलना नही है मगर जितनी साफगोई से तुम सीधा मुझे कह देती हो कि मैं न तुम्हारा मित्र हूँ न प्रेमी और न परिचित उसे सुनकर एकबारगी मेरे कदम जमीन से लड़खड़ा जाते है मैं अपने गुरुत्वाकर्षण का केंद्र भूल जाता हूँ। इन शब्दों की ध्वनि मुझे पल भर के लिए दुनिया का सबसे निर्धन जीव बना देती है।
यथार्थ के धरातल मैं फिर भी खुद को समेटता हुआ तुम्हारे समानांतर चलता चला जाता हूँ यह ठीक वैसी बात है आप नदी के किनारे चलते चलते एकदिन इंसानी बस्ती तक पहुँचने की उपकल्पना अपने मन में बना लें खासकर तब जब आप जंगल में रास्ता भटक गए हो।
आत्मीयता के प्रकाशन में कतिपय तुम्हें मैं अपने अस्तित्व के संपादक के रूप में पाता हूँ गोया तुमनें मेरे जीवन के लिए कुछ असाईनमेंट तय किए हो और मुझे अपने तमाम कौशल से उन्हें पूरा करके आपकी नजरों में अपनी उपयोगिता और सतत् प्रासंगिकता सिद्ध करनी हो।
मैं किसी भी किस्म की बैचेनी का शिकार नही हूँ बल्कि तुम्हारी बातें बड़े ध्यान से सुनता हूँ और प्रकृति के खेल पर विस्मय से भरता हूँ। तुम्हारें मानक और मार्ग से चलता हुआ भले ही मैं तुमसे कितना दूर चला जाऊं तुम्हें इस बात की कोई पीड़ा नही है मगर यदि मैं अपनी अनियोजित यात्रा के अनुभव तुम्हारे साथ बांटना चाहूँ तो तुम्हें एक तो उनकी सत्यता पर सन्देह होता है दूसरा तुम्हे लगने लगता है मैं वाग् विलास के चलते भटक रहा हूँ।
मुझे अपने अकेलेपन से कोई असुविधा नही है जीवन को किसी किस्म की शिकायत या रंज के सहारे मैंने कभी ढोया भी नही है मगर तुम्हारे साथ न जाने क्यों मेरे कुछ आत्मीय अनुबन्ध के फंदे अटक गए है जानते हुए कि तुम स्वयं को सही सिद्ध करने के लिए किसी भी सीमा तक निष्ठुर या क्रूर हो सकती हो।
खैर...! जब ये सब इतना एकतरफा है तो इसे मैं अपना ही पागलपन कहूँगा लेकिन फिलहाल इतना ही निवेदन कर सकता हूँ कि कम से कम मुझे अपनी धारणाओं से जंगल से मुक्त रखिए मैं स्वतः एक दिन खुद ब खुद उलट पाँव से तुम्हारी दुनिया से ओझल हो जाऊँगा जानता हूँ इससे तुम्हें कोई ख़ास फर्क नही पड़ेगा मेरे हिस्से में एक उदास शाम भी न आएगी मगर मेरी समग्रता और मौलिकता का मूल्य तुम्हें शायद तब थोड़ा बहुत समझ आएगा क्योंकि मेरे न होने पर तुम्हें और कोई फर्क पड़े न पड़े मगर इतना अहसास जरूर होगा कि आदमी दिल का साफ़ था।

'इतवारी खत'

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