Sunday, November 10, 2013

हरजाई

मेरे जैसे गैर पेशेवर शख्स के जीवन में  यंत्रो की  भूमिका पर कई बार गहराई से सोचता हूँ यहाँ गैर पेशेवर से आशय कंप्यूटर की तकनीकी दुनिया से ताल्लुक न रखने से है.पिछले दो महीने से घर पर लैपटॉप पर नेट का कनेक्शन नही चल रहा है वजह दो है एक तो हर महीने हजार रुपये का टाटा फोटोन प्लस का रिचार्ज जेब पर भारी लग रहा था दूसरा यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट में ब्रॉडबैंड सुविधायुक्त एक पीसी मेरे कब्जे में आ गया है जहाँ से मैं देश दुनिया से जुड़ा रहता हूँ बस इसी सुविधा के चलते घर पर फोटोन प्लस की कुप्पी गोदरेज के अलमारी पर पड़ी धूल फांक रही है. मेरी इस मनमानी और बेरुखी का सबसे बड़ा भुक्तभोगी मेरा 4 साल पुराना लैपटॉप बना हुआ है आज मैंने उसको देखा तो मुझे अपने मतलबी होने का बड़ा अफ़सोस हुआ क्योंकि बिना इंटरनेट के उसको खुले भी कई कई दिन हो जाते है वो भी उसी गोदरेज के अलमारी कि छत पर धुल की खुराक ले रहा है. फोटोन प्लस की कुप्पी और लैपटॉप फिलहाल मेरे जीवन की सबसे उपेक्षित वस्तु बनी हुई है  . कभी कभी सोचता हूँ कि जो लैपटॉप मेरे  सुख दुःख का इतना बड़ा भागीदार रहा है जिसके कीपैड ने मेरे हताशा और नाराज़गी के पलों में अपनी छाती पिटने के लिए  मेरे निर्मम हाथो के हवाले कर दी हो और हमेशा मेरे मन के द्वन्द को शब्दो का आकार दिया हो वो इनदिनों कितना तन्हा महसूस करता होगा उसे तो ये भी नही पता होगा कि मैंने एक नया यार यूनिवर्सिटी में बना लिया है  अगर उस यंत्र का अपना कोई सोचने का तंत्र होता तो मनुष्य के रूप में उसके लिए सबसे घ्रणा का पात्र मै ही होता.लैपटॉप की मेमोरी  में बेतरतीब पड़ी फाइल्स भी मुझे लानत भेजती होगी जिनको खोले भी मुझे एक पखवाड़ा  हो गया है. कुल मिलकर मेरा लैपटॉप तभी तक गुलज़ार था जब तक उसमे इंटरनेट की प्राणऊर्जा बह रही थी जैसी ही इंटरनेट बंद हुआ लैपटॉप कि ड्राइव में पड़ी फाइल्स भी अपने अपने फोल्डर में कैद हो गयी है वो मुझ हरजाई की एक क्लिक के इन्तजार में बावरी हो रही होगी ये सोच कर मेरा जी भर आता है. लैपटॉप के यूएसबी हलक में लैला मजनूँ सी फंसी रहने वाली टाटा फोटोन प्लस की कुप्पी भी कितनी बेबस हो गयी है क्योंकि उसके पास नेटवर्क का सिग्नल तो है लेकिन मुद्रा की खुराक नहीं जिसके चलते टाटा कंपनी ने उसका दाना पानी बंद कर दिया है अब घर के एकांत में मेरा लैपटॉप और फोटोन प्लस की कुप्पी अपने अपने दुःख के संगी साथी बन थोडा मुझे कोस रहे होंगे और थोडा उसका कथित भगवान् को जो हर महीने मेरा हाथ तंग ही करता जा रहा है. फोटोन प्लस की कुप्पी की चिंता और भी बड़ी होगी क्योंकि अगर एक महीने मै अगर ऐसे ही सरकारी पीसी के इश्क़ में पड़ा रहा तो फिर टाटा कंपनी उसको हमेशा के लिए खामोश कर देगी.मनुष्य के तौर पर मैं केवल साक्षी भाव से अपने बुरे दिनों के अच्छे साथी रहे इन दोनो  साथी की पीड़ा देखकर बैचैन जरुर हूँ लेकिन फिलहाल अपनी जेब को देख कर चुप हो जाता हूँ बस आज सांत्वना के लिए मैंने इतना किया कि उन पर वक्त की मार ने जो गर्द चढ़ा थी उसको मैंने साफ़ किया और मै कर भी क्या सकता हूँ....:( 

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