Friday, June 10, 2022

डायरी

 उसके पास प्रेम के कई उल्लेखनीय प्रसङ्ग थे। उसके नायकों से मुझे कभी कोई ईर्ष्या या प्रतिस्पर्धा महसूस नहीं हुई। यह बात उसे खराब लगती थी। प्रेम का एक अर्थ किसी अन्य से बेहतर सिद्ध करना भी था। और मैं कमतर या बेहतर की दौड़ से मुक्त होकर कुछ साथ बिताए वक्त हो याद रखना चाहता था बस।

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कभी-कभी लगता था मुझे कि प्रेम के लिए जितना साहस चाहिए होता है उससे कुछ दशमलव साहस कम था मेरे अंदर। इसलिए प्रेम के जुड़े मेरे प्रत्येक दावे में हमेशा एक मानक त्रुटि विद्यमान रही सदा। मैं प्रेम करने के लिए नहीं प्रेम का दस्तावेजीकरण करने के लिए उपयुक्त था सदा।

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मेरी निकटता कतिपय अर्थों में आह्लादकारी भी थी और कुछ अंशों में मैं असहनीय भी था। इन दोनों के मध्य वह बिंदु था जिस पर खड़े होकर मुझे पसन्द और नापसन्द एक साथ किया जा सकता था। इस बिंदु पर कोई पुल नहीं था इसलिए यहां से कोई रास्ता कभी न गुजर पाया।

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किसी को खोने का डर हमेशा पीछा करता था। यह डर दरअसल खुद के दुर्भाग्य पर विश्वास और नियति के षड्यंत्रों की जुगलबंदी से उपजा था। मेरे मन में में किसी को हासिल करने की चाह शायद ही कभी रही मगर हर निकट व्यक्ति को खोने का डर हमेशा साथ चलता रहा।

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एक समय के बाद हम सम्बन्धों में इस कदर लोकार्पित हो जाते हैं कि धीरे-धीरे हमारा मामूली होना ज्ञापित होता जाता है। मनोविज्ञान के स्तर पर यह बात महत्वपूर्ण थी कि सतत खुद को चमकीला बनाए रखना एक चुनौतिपूर्ण काम था। हम जैसे ही धूमिल होने लगते तो हमें अपने वाक कौशल पर सन्देह बढ़ता जाता था।

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एक समय ऐसा आता है जब हमें चीजें छोड़नी पड़ती हैं। वे अपना आकार तय कर लेती हैं। किसी जगह को छोड़ने से पहले हम उस दृश्य को कैद करना चाहते है मगर केवल वही दृश्य कैद किए जा सकते हैं जहां हम अपने आकार को लेकर सन्देह से न भरे हो।


©डॉ. अजित

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