Friday, April 15, 2016

गुमशुदा

सारंगी और वॉयलिन दो म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट ऐसे है जब वो जिद पर आते है तब मुझ पत्थर को भी रुला देते है। एक मन के रेगिस्तान में बवंडर लाता है तो दूसरा मेरे हाथ पीछे बांध कन्फेशन के लिए किसी पुराने चर्च में घुटनों के बल खड़ा कर देता है।
ऐसा महसूसता हूँ दोनों के तार मेरे दिल के बीचोबीच खिंचे हुए है। जब कोई फनकार उन्हें छूता है दिल बेहद छोटा हो जाता है धड़कनें रास्ता भूल जाती है वें खोए हुए किस्सों से मंजिल का पता पूछती है।
जब कोई रूहानी आवाज़ इनका सहारा लेकर आलाप भरती है दिल में एक अजब बेबसी की हूक उठती है ऐसा लगता है ये हूक सीना फाड़कर बिजली की तरह चमकेगी और मुझे कोयला बना अनन्त में विलीन हो जाएगी।
सारंगी में लोक का अद्भुत संसार है जिसमें वो काँधे से टिकी एक प्रेमिका है जिसको बजाना उसके बाल बनाने जैसा लगता है वॉयलिन भी एक रूठी हुई प्रेमिका ही लगती है फर्क बस इतना उसको मनाने के लिए लगातार उसकी निगाहों में देखना पड़ता है वो स्पर्शों को साधना और सहेजना जानती है।
दोनों के तार दुःखो के झूले है जिन पर बैठ हम घबरातें हुए देवताओं के विलास लोक में अपने दुःखो के नोटिस चिपका कर आतें हैं।
दोनों ही जब बजती है तो खोए ख़्वाबों छूटे हाथों और किस्मत के तमाशों के खत बारी बारी से दिल की दराज़ में रखती जाती है।
जब इनकी बात सुनता हूँ तो खुद को भूल जाता हूँ दोनों से कुछ ऐसा रिश्ता है जैसे पूर्वजन्म का कोई अधूरा किस्सा आवाज़ दे रहा हो और मेरे कान इस दुनिया में उसकी शक्ल मिलाते गुमशुदा हो।
इसलिए भी सारंगी और वॉयलिन मैं आँखों से सुनता हूँ कानों से देखता हूँ और दिल को पुरज़ा पुरज़ा हवा में उड़ाता हूँ,हवा का रुख जानने के लिए नही बल्कि हवा का रुख बदलनें के लिए क्योंकि तब मनमुताबिक धड़कनें में चलें तो उससे भी इबादत में खलल पड़ता है।
सारंगी मुझे बताती है मैंने क्या खोया है वॉयलिन मुझे बताती है कि मैं क्या खोने जा रहा हूँ दोनों के सामनें मैं एक बेबस श्रोता होता हूँ जो अपने अतीत और भविष्य को देख लेता है मगर सम्मोहन में दोनों से ही इलाज़ के नुक्ते पूछना भूल जाता है।

'दो सखी'

No comments:

Post a Comment