तुम किस तरह से जीवन में आए थे और किस तरह से
जीवन से चले गए इस बात को यदि मुझे समझाने की दृष्टि से कहने के लिए कहा जाए तो
मेरा शब्दकोश एकदम निष्प्रयोज्य सिद्ध होगा. मेरे पास कोई ऐसा प्रतीक और बिम्ब नही
है जिसके माध्यम से मैं तुम्हारे आने और तुम्हारे जाने की घटना को ठीक ठीक ढंग से
बता सकूं.
कभी लगता है कि तुम एक स्वप्न की तरह आए और एक
यथार्थ की भांति की चले गए मगर दुसरे ही पल मुझे लगता है कि तुम एक यथार्थ की तरह
जीवन में शामिल हुए और स्वप्न की भांति अपनी विलुप्त हो गए. तुम्हारा आना न किसी
प्रार्थना का परिणाम था और और तुम्हारा जाना न मेरी किसी सायास गलती का परिणाम है.
तुम्हारा आना कभी कभी किसी दैवीय हस्तक्षेप की
तरह लगता है जो मुझे यह बताने आया हो कि जीवन की हर समस्या का समाधान आंतरिक होता
है बाहर से हम केवल कुछ अंशो में प्रेरणा हासिल कर सकते है. तुम्हारा जाना मुझे
किसी ऋषि के श्राप के जैसा लगता है जो अचानक ही मेरी किसी असावधानी से नाराज़ होकर
मुझे दे दिया गया हो.
फ़िलहाल मैं तुम्हें देव और असुर,वरदान और
श्राप दोनों से मुक्त रखना चाहती हूँ.तुम एक औसत मनुष्य थे मगर अपने औसतपन में भी
तुम्हारे अन्दर आत्मीयता बहुत सघन रूप से विद्यमान थी. तुम उदासी का अनुवाद करना
जानते थे इसलिए तुम्हारे सामने मुझे कभी अभिनय नही करना पड़ा.
तुम मुस्कानों पर ऐसी टीका कर सकते थे कि खुद
की आँखों से खुद की मुस्कान देखने की एक अदम्य प्यास जाग जाती थी. ऐसा नही है कि तुम्हारे
पास मेरे सारे दुखों के ज्ञात समाधान थे मगर इतना जरुर है कि तुम्हें यह ठीक-ठीक
पता था कि दुखों को कैसा अकेला छोड़कर उनको तड़फते हुए देखा जा सकता है. तुम्हारे
पास सुख का यह बेहद मौलिक किस्म का संस्करण था.
तुम सुख के एक खराब भाष्यकार थे मगर फिर भी
तुम्हारे पास सुख एक ऐसी परिभाषा था कि मैं अक्सर इस बात को लेकर कन्फ्यूज्ड हो
जाती थी कि मैं सुख को दुःख कहूं या दुःख को सुख. मैंने गाहे-बगाहे तुम्हारे मूड की
परवाह किए बगैर तुमसे बहुत से ऐसे सवाल किए जो मुझे नही करने चाहिए थे मगर अब मैं
तुम्हारे धैर्य की एक मौन प्रशंसक बन गई हूँ.
जिस दिन तुम मिले थे ठीक उसी दिन मुझे इस बात
का बोध हो गया था कि तुम्हें सहेज कर रखना मेरे बस की बात नही है और एकदिन मैं
तुम्हें जरुर खो दूँगी. और एकदिन वही हुआ मैंने तुम्हें अचानक से खो दिया. अच्छी
बात यह रही कि मैंने कभी तुम्हारे ऊपर अनुराग की दृष्टि नही रखी अन्यथा तुम्हारी
अनुपस्थिति में मेरे लिए खुद से बात करना बेहद मुश्किल हो जाता. मगर अनुराग की
अनुपस्थिति का यह अर्थ बिलकुल नही था कि मुझे तुम पसंद नही थे. मुझे तुम पसंद थे
और ठीक उतने पसंद थे जितनी मुझे अपनी एक कलम पसंद थी जिसमें बार-बार मैं रिफिल
कराती थी. दरअसल तुम मेरे एक मौलिक किस्म के हस्ताक्षर से थे जिसकी एक कलात्मक
ख़ूबसूरती थी मगर मैंने जिसकी मदद से मैंने कभी लाभ के लिए कोई धन आहरित नही किया.
तुम लाभ-हानि, जीवन-मृत्यु, यश-अपयश से परे थे मगर मैं तुम्हें विधि हाथ नही कहना
चाहती क्योंकि विधि के हाथ अक्सर बेहद छोटे होते है.
तुम एक आकाश थे जो थोड़ी देर सुस्ताने के लिए
धरती पर आए थे तुम्हारी जरूरत इस ग्रह जैसी अनेक धरतियों को है. तुम एक चित्र में
शामिल होते हो तो दुसरे चित्र से अनुपस्थित.
हीरा है सदा के लिए यह अक्सर हम सुनतें आए है
मगर तुम सदा के लिए नही थे इसलिए तुम हीरे
से भी अधिक मूल्यवान थे. तुम्हारा होना अब एक चमत्कार सरीखा लगता है और तुम्हारा न
होना इस बात की पुष्टि करता है कि कलयुग में कोई चमत्कार कभी घटित नही होता है.
तुम अपनी गति से शामिल हुए और अपनी लोक की गति
से विलग यह कोई अनूठी बात नही है मगर अनूठी बात यह है कि तुम जब तक थे अपनी पूरी
सम्पूर्णता में थे तुम्हें खोने के भय को मैंने कभी अपने मन में स्थान नही दिया
उसका एक लाभ यह हुआ कि अब जब तुम नही हो तो मैं तुम्हें याद करते हुए भावुक नही
होती बल्कि तुम्हारी बातें दोहरा कर मुझे एक अलग किस्म का आत्मविश्वास मिलता है और
उसी आत्मविश्वास के बल पर मैं तुम्हारे खोने की बातें हंसते हुई बता रही हूँ.जबकि
मैं यह जानती हूँ कि मेरे पास तुम्हारा नया पता नही है.
तुमनें एक यात्रा की और तुम्हारे साथ एक
यात्रा मैंने भी की इस यात्रा की स्मृतियाँ मुझे हमेशा यह बात याद दिलाती रहेगी कि
एक मनुष्य से प्रेम करने के हज़ार बहाने हो सकते है और उसे भूलने का एक बहाना भी
कभी-कभी कम पड़ता है. मैं तुम्हारे साथ रहकर प्रेम और घृणा का भेद समझ पायी इसलिए
अब मुझे प्रेम की आवश्यकता नही है. ये बात कहने का आत्मबल मेरे पास तब नही था जब
तुम मिले थे.
तुम्हरा मिलना मेरे लिए खुद से मिलने जैसा है
और तुम्हारा बिछड़ना भी मुझे मेरे और नजदीक ले आया है इसलिए मेरे मन में कोई खेद या
संताप अब शेष नही है. मुझे बोध है कि तुम ठीक इसी वक्त किसी दुसरे वक्त और हालत से
लड़ते शख्स की मदद कर रहे होंगे क्योंकि तुम इस दुनिया में इसी लिए आए हो.
‘बेपते की चिट्ठी’
© डॉ. अजित
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