तुमसे मिलकर जज किए जाने का कोई खतरा नही था.
मैं तुम्हारे गले लग सकती है और मुझे इस बात का भय नही था कि तुम ये न सोचने लगो
कि कहीं मैं तुमसे प्यार तो नही करने लगी हो. तुम वास्तव में वैसे दोस्त थे जैसा
एक दोस्त को होना चाहिए. हमख्याल न होने के बावजूद तुम हमजबां थे.
लिंगबोध और लिंगभेद पर इतने विमर्श मैंने पढ़ें
है मगर तुम्हारे साथ रहकर मैंने पहले बार लिंग के बोध से वास्तविक मुक्ति महसूस
की. तुमसे मिलकर मैंने जाना कि स्त्री और पुरुष केवल दो देह भर नही बल्कि देह के शिखर
पर चढ़कर एक अलग दुनिया देखी जा सकती है जो हम असल में कभी नही देख पातें है.
ऐसा नही है मेरी तुमसे विशुद्ध लौकिक दोस्ती
थी कभी-कभी मुझे तुम पर गहरा प्यार भी आता था मगर ये प्यार मेरे अंदर को ऑब्सेशन
कभी पैदा नही कर पाया इस प्यार के लक्षण में अमूर्त रूप मातृत्व प्रेम की छाया हमेशा
शामिल रही. मैं तुम्हें खोना नही चाहती थी इसलिए हमेशा चाहती रही कि तुम अपने
बारें थोड़े सावधान रहो.
यह सावधानी तुम्हारे उम्र भर काम आनी थी क्योंकि
मुझे पता था एकदिन मैं नही रहूँगी. हालांकि तुमने कभी भावुकतावाश भी मुझे बाँधने
का प्रयास नही किया इसी कारण मैं कभी भी तुम्हारे पास से जा ही नही पायी. तुम हमेशा
एक गहरी आश्वस्ति में रहे मुझे नही पता यह तुम्हारा किस किस्म का बोध था मगर मैंने
रिश्तों को लेकर तुम्हें कभी आवेश में नही देखा.
मनुष्य सदियों से सही-गलत,पाप-पुण्य के
मुकदमों में उलझा हुआ है वह एक पल में खुद को सही पाता है मगर दुसरे ही पल में खुद
को दोषी समझने लगता है. परिचय और संबोधनों के लोकाचार के बाद भी अंतत: एक स्त्री या
एक पुरुष का ही परिचय बचता है. मन के प्रोमिल भाव और अनुराग एक समय के दूषित या
बासी लगने लगते है. मगर तुम्हें देखकर लगता है कि जीवन को यदि थोड़ी देर हम अकारण
जीना चाहें तो उस थोड़ी देर के लिए हमेशा तुम्हारी जरूरत रहेगी. इस मामले में मुझे
तुम्हारा कोई विकल्प कभी नजर नही आया और आता भी तो मैं तुम्हारे बदले कोई विकल्प
कभी न चुनती.
ऐसा नही था कि तुम में सब कुछ बढ़िया ही बढ़िया
था तुम में भी कुछ खराबियां थी मगर उन खराबियों के बारें में सोचने पर वो हमेशा
तुम्हारे कद के सामने बौनी नजर आयी और फिर मुझे भी थोड़े खराब आदमी हमेशा से पसंद
रहें है अगर दुनिया में सभी लोग अच्छे हो जाए तो ये दुनिया कितनी नीरस हो जाएगी
फिर हम मनुष्यों के पास निंदा करने के विषय कहाँ से आएँगे?
आज भी मैं अतीत में नंगे पाँव टहल आती हूँ और
मेरे पाँव जख्मी नही होते है उसकी एकमात्र वजह यही है कि मेरे पास अतीत के नाम पर
शिकायतों का वन नही है और न ही मेरे पास उथले हुए एकांत की स्मृतियाँ है बल्कि
मेरे पास एक बेहद जीवंत जीवन है जहां मैं तुम्हारी आँखों में आँखे डाल कर आसमां को
चुनौति देते हुए कह सकती हूँ तुमसे गहरा और बड़ा दोस्त ठीक मेरे सामने है.
‘अतीत-प्रीत’
©डॉ. अजित
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