आज जाने की जिद न करो
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जिद भी एक अजीब शै है. कभी तुम्हें बुलाने के
लिए हुआ करती है तो कभी तुम्हें रोकने के लिए दरम्यां होती है. प्रेम ने मुझे थोड़ा
जिद्दी बनाया है. शायद जिद से जुडी मेरी कोई स्मृतियाँ बेहद कमजोर है इसलिए मुझे
अपनी या तुम्हारी आख़िरी जिद याद भी नही है. फिलहाल मैं आधी धूप और आधी छाँव में
लेटी हुई जगजीत सिंह को सुन रही हूँ वो गा रहे है ‘अब अगर आओ तो जाने के लिए मत
आना, सिर्फ अहसान जताने के लिए मत आना’ इस गज़ल को सुनते हुए धूप धीरे सरक रही और
मैं छाँव की कैद में खुद को खड़ा पा रही हूँ.
मुझे धूप और छाँव से ज्यादा फ़िलहाल तुम्हारी
फ़िक्र है मगर मैं इस फ़िक्र को शिकायत की शक्ल में कतई नही रखना चाहती हूँ ,इसलिए
मैंने शिकायतों को एक मीठी नींद सुला दिया है फिलहाल मैं आँखें मूंदे आसमान को देख
रही हूँ आसमान मुझे यूं देख मुझ पर हंसता है उसकी हंसी के सहारे बादलों की
छोटी-छोटी बच्चियां हवा को साथ लेकर टहलने के लिए निकल गई है. मेरे कान की बालियाँ
गज़ल के बोझ से थोड़ी थक गई है इसलिए वो सो गई है मैंने उनको इसलिए सोने दिया वरना
उनका शोर मुझे गज़ल और तुमसे दोनों से जुदा कर देता.
दिल अजीब सी जिद पर अड़ा है यह बात कहते हुए
मैं एक लम्बी सांस छोड़ना चाहती हूँ मगर ऐसा करने से फिलहाल बच रही हो मेरे ऐसा
करने से धरती की दिलचस्पी मेरी जिद को जानने में हो सकती है. मैं नही चाहती कि मेरी
जिद के बारें किसी को कोई खबर हो.इस दौर में जीने के लिए मुझे थोड़ी अय्यारी थोड़ी
मसखरी सीखनी पड़ी है. जानती हूँ तुम मुझे अब कभी हासिल नही होंगे और हासिल शब्द से
तुम्हें हमेशा ऐतराज़ भी रहा है यह खुद में एक जिद है कि किसी को हासिल ही किया
जाए.
बादलों की तरह मैंने तुम्हें उन्मुक्त गगन में
अकेला छोड़ दिया है, अकेला जानबूझकर कह रही हूँ क्योंकि यह बात तुम भी जानते हो
मेरे बिना तुम सदा अकेले ही रहोगे. ये तुम्हारा या मेरा नही बस समय का एक चुनाव है
इसलिए फिलहाल मुझे प्रेम में संदेह करने की आदत से मुक्ति भी मिल गई है.
तुम्हें सोचने के लिए पहली दफा ऐसा हुआ कि
मुझे आँखें बंद करनी पड़ी है वरना तुम्हारा चेहरा हमेशा मेरी आँखों के सामने रहा
है. अब लग रहा है तुम सच में बहुत दूर चले गए हो इतनी दूर कि शायद ही अब कभी मैं खुली
आँखों से तुम्हें देख सकूंगी.
मेरी धड़कनों ने तुम्हारे स्पर्शो को आज शाम
मिलने के लिए बुलाया है मगर उनका कहना है कि मेरे सुर बिछड़ गए है इसलिए उन्हें
संदेह है कि वो मेरे साथ रहकर यादों का झूला झूल सकेंगे. तुम्हें मेरी भावुक बातों
से हमेशा ऐतराज़ रहा है मगर अब देखो जब सब कुछ छूट गया है तो मेरे और तुम्हारे पास
केवल भावुक बातें ही बची है जिनके सहारें हम गुजरे हुए वक्त की आँख में काजल लगा
सकते है.
गज़ल खत्म हो गई है मगर मेरे सामने तुम खड़े हो
मैं फिलहाल तुम्हारे कस के गले लगना चाहती हूँ ऐसा करते हुए शायद मैं सिसक कर रो
भी पडूं, ये गले लगना विदाई के लिए गले लगना नही है मैं बस चाहती हूँ कि थोड़ी देर
के लिए कालचक्र को विलम्बित कर दूं और देहातीत होकर समय की देहरी से पार निकल कर तुम्हारा
हाथ थामे उस दिशा की तरफ निकल जाऊं जिस देस से लोग कभी विदेश नही जाते.
जिद,जुनून या प्यार अब कुछ भी नही आता है याद
बल्कि अब मेरे पास कुछ गल्प है जो मैनें नही बनाए है उन्होंने मुझे बनया है फिलहाल
मैं उन्ही की दहलीज़ में बैठी हुई वक्त के कंकर बीन रही हूँ ये काम मुझे धूप ने
सौंपा था मगर मैं इसे छाया को सौंप कर अपनी छाया में एकदिन विलीन हो जाऊँगी.
जानती हूँ यह बात थोड़ी उदास करने वाली है मगर
मैं भी चाहती हूँ कि इस बात पर तुम्हें उदास हो जाओ और फिर मेरे और तुम्हारे बीच की
जिद हमेशा के लिए मोक्ष पा जाए.
‘ थोड़ी सी जिद, थोड़ा सा जुनून’
©डॉ. अजित
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