दृश्य एक:
बुद्धिस्ट मोनेस्ट्री की एक शाम है. बौद्ध भिक्षुक शाम की प्रार्थना के लिए तैयार है. एक बच्चा अंदर दाखिल होता है. वो जोर से कोई गाना गा रहा है. उसके गाने की आवाज़ मोनेस्ट्री की शान्ति में बड़ी बाधा है.
एक लामा उसको रोकना चाहता है वो उसके नजदीक आकर कहते है.
बच्चे यहाँ गाना मत गाओ ये साधना करने की जगह है!
बच्चे यहाँ गाना मत गाओ ये साधना करने की जगह है!
बच्चा रुक जाता है फिर वो लामा से पूछता है साधना करने की चीज़ है या घटित होने की?
लामा इस अप्रत्याशित सवाल से हैरान होता है वो बच्चे से कहता है ये अभी तुम्हारा विषय नही इसलिए इसका जवाब तुम्हे नही दिया जा सकता
तो गाना आपका विषय कैसे हुआ? बच्चा लामा से पूछता है
मेरा विषय यहाँ की व्यवस्था से सम्बंधित था. गाना उसमे एक बाधा उत्पन्न कर रहा था अब लामा बच्चे से थोड़े चिढ गया है
बच्चा हंसता है और कहता है व्यवस्था तो एक सुविधा हुई और साधना तो सुविधा को तोड़ने की प्रक्रिया है
लामा अब शास्त्रार्थ की मुद्रा में आ गया है उसका अहम् आहत हुआ है बच्चे की बातों से
मगर बच्चा तेजी से गाना गाता हुआ हुआ बाहर निकल जाता है
लामा चिल्लाता हुआ कहता है दीप जाओ अँधेरा हो गया है.
लामा चिल्लाता हुआ कहता है दीप जाओ अँधेरा हो गया है.
दृश्य दो:
शशि के पास एक चश्मा है. चश्मा उसका दोस्त है ऐसा दोस्त कि उसे वो मंजन करते वक्त भी नही उतारती है उसका बस चले तो वो चश्मा लगाए ही मुंह भी धो ले.
आज शशि का चश्मा नही मिल रहा है रात उसने बिस्तर के नजदीक किताब पर रखा था. सुबह जगी तो चश्मा वहां नही था. शशि परेशान है वो बेहताशा तलाश रही है मगर नही मिला. थक कर वो बालकनी में बैठ गयी है.
शशि थोड़ी उदास है. शशि खुद से सवाल कहती है कि जिंदगी में कोई चीज़ इस तरह शामिल नही करनी चाहिए कि जिसके बिना काम न चल सके. वो खुद को छूकर देखती है उसकी देह उसका खुद का स्पर्श भूल गई है. वो अपनी आँखे बंद करके बैठ जाती है अपने दोनों कानों बारी बारी हाथ फेरती है दरअसल वो यहाँ भी अपना चश्मा तलाश रही है.
खोई चीजे बार बार तलाशने की आदत मनुष्य को बहुत कष्ट देती है वो हर जगह एक ही चीज तलाशता है. यह आदत निर्जीव और सजीव दोनों में कोई भेद करना नही जानती है.
शशि अपने चश्मे का कवर देखती है और अपने ऑप्टिकल शॉप का फोन नम्बर कागज़ पर नोट करती है. फिर उस कागज़ को फाड़कर बालकनी से नीचे फेंक देती है. शशि ने कुछ दिन बिन चश्मे के रहने का निर्णय किया है.
तभी चश्मा उसे दिख जाता है मगर उसे देखकर उसे ख़ुशी नही हुई उसे अपने निर्णय के कमजोर होने का दुःख जरुर हुआ उसने चश्मे को फिलहाल कवर में बंद करके रख दिया अपने निर्णय के प्रति यह उसका अधिकतम आदर था क्योंकि चश्मा लगाने वो बच नही पाएगी ये बात वो भी अच्छी तरह जानती है.
© डॉ. अजित
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